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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

सरकारें घबराहटकी स्थितिमें पड़ जानेपर--और हो सकता है, बहुत मामूलीसी घटनाओंके कारण भी वे ऐसी स्थितिमें पड़ जायें अपना सन्तुलन खो बैठी हैं। मैंने दमन और आतंकका राज्य स्थापित किये जाते भी देखा है। और देखा है, हम भारतीयोंके बीच जो श्रेष्ठसे-श्रेष्ठ और नेकसे-नेक व्यक्ति हैं, उन्हें सन्देहका शिकार होते, और सरकारके खुफिया विभागके भयसे दिन-रात त्रस्त रहते।...जब सरकार दमनकारी नीति अपनाती है तब निर्दोष लोग सुरक्षित नहीं रहते। उस हालतमें मेरे जैसे लोगोंको निर्दोष नहीं माना जायेगा। उस समय निर्दोष तो केवल वही आदमी होगा जो राजनीतिसे कोई वास्ता न रखे, जो अपने समयकी सार्वजनिक गतिविधियों में कोई भाग न ले, जो अपने घरमें बैठकर चुपचाप ईश्वर प्रार्थना करे, सरकारी कर अदा करता जाये और पूरे सरकारी अमलेको बराबर सलाम करता रहे। जो आदमी राजनीतिमें दखल देता हो, किसी सार्वजनिक कार्यके लिए चन्दा इकट्ठा करता घूमता हो, जो आदमी सार्वजनिक सभाओंमें बोलता हो, वह उस समय सरकारको निगाहमें संदिग्ध व्यक्ति बन जाता है। मैं सदैव इन दोनोंके बीचकी स्थितिमें रहता आया हूँ, अतः यदि और कोई वजह न हो तो भी व्यक्तिगत कारणवश कहना चाहूँगा कि कार्यपालिकाके हाथमें इतनी सख्त ढंगकी सत्ता होनेसे केवल खराब आदमियोंको ही चोट नहीं पहुँचेगी। इसकी चोट अच्छे और बुरे दोनोंपर पड़ेगी, और इसके परिणामस्वरूप इस देश में लोकभावनाका ऐसा हास होगा और राजनीतिक चेतनाका इतना अधिक पतन होगा कि उत्तरदायी सरकार-सम्बन्धी आपकी सारी बातें महज मजाक बनकर रह जायेगी। आप अपनी विधान परिषदोंको सदस्य संख्या भले ही बढ़ा लें, मताधिकारका आधार भले ही और अधिक व्यापक कर दें, लेकिन तब इन परिषदोंमें जो लोग आयेंगे वे सब चापलूस होंगे, कमजोर लोग होंगे, और एक दिखावटी लोकतान्त्रिक सरकारके अन्तर्गत दमनकारी सत्तासे युक्त नौकरशाही स्वच्छन्द शासन करेगी। दुष्टोंको दण्डित करने के लिए हम सभी उत्सुक हैं। हममें से कोई नहीं चाहता कि दुष्टताकी सजा न दी जाये किन्तु...दुष्टोंको भी एक निश्चित तरीकेसे सजा दी जाये। मुझे याद है कि जब स्केफिग्टनको गोलीसे उड़ाया गया था,[१] तब सारी दुनिया स्तब्ध रह गई थी।...यहाँतक कि युद्धमें भी, जब सम्पूर्ण मानवतामें भय और उत्तेजनाका भाव व्याप्त होता है, और जब हर व्यक्ति केवल एक ही चिन्ता करता है और वह यह कि शत्रुपर किस प्रकार विजय प्राप्त की जाथे, उस समय भी, श्रीमन्, युद्धके कानून होते हैं। आपको खेलके नियमोंका पालन करना है। जब किसी देशमें अपराधी लोग अपराध करते हुए घूम रहे हों, उस समय उन्हें भी अंकुशमें लानेके कुछ तरीके हैं। यह उचित नहीं है कि आप उन्हें मनमाने तौरपर

  1. सन् १९१६ में डब्लिनके ईस्टर विद्रोह के सिलसिलेमें ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा