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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्हें समझ सकना कठिन है। हम इस तर्कसे सुपरिचित हैं कि भारत सुरक्षा अधिनियम अथवा वैसे ही किसी दूसरे कानूनके अभावमें हिंसात्मक कार्रवाइयोंको फूटनेसे रोक सकनेकी कोई गारंटी सम्भव नहीं थी। इस तर्कमें दो बातें पहलेसे मान ली गई है पहली तो यह कि दमनकारी कानून विप्लववादी किस्मके अपराधोंको सिर्फ दबाने के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि ऐसे अपराध तभीतक रुके रह सकते है जबतक ऐसा कानून लागू रहे। दूसरे, अभी भी ऐसे लोग मौजूद थे जो विप्लववादी थे या जिनपर विप्लववादी होनेका सन्देह था।

उक्त दोनों कल्पित धारणाओंमें से पहली कल्पना तो राजनयिकताका दिवालियापन और विफलताकी आत्मस्वीकृति प्रकट करती है; और दूसरी कल्पना, यदि वह सच हो तो, हद दर्जेकी असमर्थता प्रगट करती है। तथ्य यह है कि दमनकारी कानूनोंकी माँग करनेका मतलब है लोक-इच्छाके सामने न झुकनेका दुराग्रह; दूसरे शब्दोंमें जनताकी इच्छाके विरुद्ध उसपर शासन करना। रौलट विधेयक पेश होने के अवसरपर दिये गये अपने भाषणमें[१] माननीय श्री शास्त्रीने यह बात बिलकुल स्पष्ट कर दी थी। उन्होंने कहा हालांकि कट्टर अराजकतावादी लोग राजनीतिक सुधारोंसे सन्तुष्ट नहीं है, लेकिन तब भी शान्ति स्थापित करनेका सच्चा रास्ता दमन नहीं, ये सुधार ही हैं। उन्होंने आगे कहा:

अराजकतावादी लोग मानसिक असन्तुलनकी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थितिमें हैं, इसीलिए क्या हम यह कहेंगे कि चूँकि ये लोग राजनीतिक रियायतोंसे सन्तुष्ट होनेवाले नहीं है इसलिए हम उनके बारेमें सोचेंगे ही नहीं; और हम उनके साथ केवल कानूनी तौरपर निपटेंगे? मेरे विचारसे ऐसा रवैया रखकर चलना स्वस्थ राजनयिकता नहीं है। हमें चाहिए कि हम उन्हें ऐसे सन्तोषजनक सुधार दें जिनसे उनको राजनीतिक स्वतन्त्रताको आंकाक्षाकी कुछ पूर्ति हो। लेकिन आखिर जिन्हें सन्तुष्ट करना है, वे अराजकतावादी नहीं हैं। हमें तो उस सामान्य वातावरणको सुधारना है जिसमें अराजकता पनपती है, और जब अराजकतावादी लोग देखेंगे कि उन्हें कहींसे कोई सहानुभूति नहीं प्राप्त हो रही है, और जिस भूभागपर पूर्ण सन्तोष और राजनीतिक समृद्धि व्याप्त है, वहाँ वे अपने कुटिल सिद्धान्तोंका प्रचार नहीं कर सकते तब वे कानूनके हाथों न भी मरें तो भी अपने-आप मर जायेंगे।

इसके माने हुए दमनकारी कानूनसे निर्दोष लोगोंको डरनेकी जरूरत नहीं है, ऐसा कहनेपर माननीय श्री शास्त्रीने जो जवाब दिया वह भी ध्यान देने योग्य है। उन्होंने कहा:

कोई खराब कानून एक बार पास हो जाने के बाद हमेशा खराब आदमियोंके ही विरुद्ध प्रयुक्त हो, ऐसा नहीं है।...मैंने देखा है कि बहुत-सी

  1. यह भाषण केन्द्रीय विधान परिषदमें ७ फरवरी, १९१९ को दिया गया था।