पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/१८७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५७
पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

था, ध्यान में रखते हुए अब भारत सरकार भारत सुरक्षा अधिनियमको रद कर देगी और खुफिया विभागको अवांछित निगहबानीसे उसे मुक्ति मिल सकेगी।

इसलिए जब एकाएक ये दोनों विधेयक उसके सामने आये तो वह आश्चर्यचकित रह गई। विधेयकोंको प्रस्तुत करते हुए वाइसराय महोदयने जो भाषण दिया उससे यह बेचैनी और बढ़ गई, क्योंकि भाषणसे ऐसा प्रकट होता था जैसे इन विधेयकोंका उद्देश्य सुधारोंके अन्तर्गत अंग्रेज अफसरोंकी सुरक्षाको जो खतरा था, उसे दूर करना हो। भारतीयोंका इस विषय में क्या रवैया है, इसे श्री गांधीने अपना सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ करते समय समाचारपत्रोंको भेजे गये अपने निम्नलिखित पत्रमें[१] स्पष्ट किया:

श्री गांधीने अपने पत्रमें जिस सत्याग्रहकी प्रतिज्ञाकी चर्चा की, वह हम नीचे दे रहे हैं।

अब हम यथासम्भव संक्षेपमें विधेयक संख्या २ पर विचार करेंगे, जो रौलट अधिनियमके नामसे जाना जाता है। हम विधेयक संख्या १ पर विचार नहीं करेंगे, क्योंकि स्पष्टतः जान पड़ता है कि सरकारने उसे वापस ले लिया है।

इस अधिनियमका यह प्रचलित नाम भारत सरकार द्वारा १० दिसम्बर, १९१७ को नियुक्त की गई राजद्रोह समितिके अध्यक्ष न्यायमूर्ति रोलटके नामपर पड़ा है। इस समितिका काम निम्नलिखित था:

(१) भारतमें विप्लववादी आन्दोलनसे सम्बन्धित अपराधमूलक षड्यन्त्रोंके स्वरूप और व्यापकताकी जाँच करके बताना, और (२) षड्यन्त्रोंका मुकाबला करते हुए उपस्थित होनेवाली कठिनाइयोंकी जाँच करना और उनपर विचार करना, तथा उनसे सरकार कारगर ढंगपर निपट सके, इसके लिए यदि कोई कानून बनानेकी आवश्यकता हो तो उस कानूनके विषयमें सरकारको परार्मश देना।

समितिको बैठकें और कार्यवाही गुप्त रहे, ऐसा निर्देश था। समितिने १५ अप्रैल, १९१८ को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। लाहौरमें चार बैठकोंके अलावा समितिकी सारी बैटकें कलक तामें हुई। न्यायमूर्ति श्री रौलटने रिपोर्टके साथ सरकारको भेजे गये अपने पत्रमें लिखा:

जैसा कि हमारी नियुक्ति करनेवाले आवेशपत्रमें निर्देशित किया गया था, हमने अपनी हर बैठक गुप्त रूपसे की।

लोगोंको आज भी यह नहीं मालूम हो सका है कि समितिके सामने किस प्रकारके बयान दिये गये या बयान देनेवाले कौन लोग थे। स्वभावतः इन गवाहोंसे जनताकी ओरसे कोई जिरह नहीं की गई, क्योंकि समिति में जनताका कोई प्रतिनिधि नहीं था।

उक्त दोनों विधेयक इसी समितिकी सिफारिशोंका नतीजा थे। हमने समितिकी रिपोर्ट और सिफारिशें पढ़ी है। चूंकि इन सिफारिशोंका मंशा एक ऐसी परिस्थितिसे निपटनेकी तजवीज करना था जो सिफारिशें करते समय मौजूद ही नहीं थी, इसलिए

  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रके पाठके लिए देखिए खण्ड १५, पृष्ठ १२४-२५।