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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दस्तंदाजी की, उससे यह असन्तोष एकदम भड़क उठा।[१] दोनों ही प्रान्तोंमें हिंसात्मक कार्रवाईके कारण बिलकुल स्पष्ट थे, और हमारी दृष्टि में ये कारण ऐसे नहीं थे जिनका निवारण और निराकरण नहीं किया जा सकता था। जो भी हो, जैसा कि सरकारका कहना है, भारत सुरक्षा अधिनियमकी रू से प्राप्त अधिकारोंकी सहायतासे उसने बंगाल और पंजाब, दोनों ही प्रान्तोंमें हिंसात्मक कार्रवाइयोंपर पूरा नियन्त्रण स्थापित कर लिया।

युद्धकालमें जिन विप्लवकारी उत्पातोंके फूट पड़ने की आशंका हो गई थी, उन्हींका मुकाबला करनेके लिए, यह कानून एक संकटकालीन कदमके रूप में पास किया गया था। ऐसे समय में जब कि सारी फौजी ताकत भारतसे बाहर फ्रांस और मेसोपोटामियाके युद्धक्षेत्रोंमें लगा दी गई थी और जब भारतकी आन्तरिक शान्ति मुख्य रूपसे जनताकी राजनिष्ठा और शान्तिप्रिय स्वभावपर ही निर्भर कर रही थी, इस तरहके सत्ताके प्रयोगकी बात समझमें आ सकती है। कार्यपालिका जब असाधारण सत्ता--जैसे मार्शल लॉ--प्राप्त कर लेती है तब एक पुलिसवाला सम्भवतः चार पुलिसवालोंके बराबर काम कर सकेगा; लेकिन ऐसा प्रजाकी स्वतन्त्रताकी कीमतपर, उसे पुलिसको कार्यविधिका नियमन करनेवाले स्वस्थ नियन्त्रणोंके लाभसे वंचित करके ही किया जाता है। इसलिए जब युद्ध समाप्त हुआ तो जनता बड़ी उत्सुकतासे भारत सुरक्षा अधिनियमके रद

किये जानेकी प्रतीक्षा कर रही थी। इस बातके लिए वह इस कारणसे और अधिक उत्सुक थी, हालाँकि सरकारने घोषणा की थी कि इस अधिनियमका प्रयोग वास्तविक आवश्यकता पड़नेपर ही किया जायेगा और राजनीतिक आन्दोलनों को दबाने या लोक-सेवी व्यक्तियोंको गतिविधियों में बाधा डालनेके लिए इसका उपयोग कभी नहीं किया जायेगा, किन्तु वास्तव में इसका उपयोग राजनीतिक स्वतंत्रतापर प्रतिबन्ध लगानेके लिए किया गया था। एक ही उदाहरण लें, तो इसका प्रयोग श्रीमती बेसेंट और उनके साथियोंको[२] नजरबन्द करनेके उद्देश्य से किया गया था, क्योंकि वे भारतीय स्वराज्य (होमरूल) आन्दोलनके उग्र स्वरूपका प्रतिनिधित्व करते थे। श्रीमती बेसेंटके बड़ेसे-बड़े शत्रुको भी इस आन्दोलनमें हिंसाकी कोई छाया नहीं दिखाई देती थी। अत: जनताके मनमें सरकारको तरफसे पूरी तरह अविश्वास उत्पन्न हो गया था, और उसने यह उम्मीद की थी कि युद्धमें भारतने जो शानदार सेवा की है उसे तया अगस्त १९१७ की उस घोषणाको,[३] जिसमें उत्तरदायी शासनकी स्थापनाका संकेत देनेवाले सुधारोंका उल्लेख

  1. सन् १९१४ में कई सौ पंजाबी कैनेडामें बसनेके लिए जहाज द्वारा भारतसे रवाना हुए। लेकिन कैनेडाकी सरकारने उन्हें वहाँ उतरने नहीं दिया। अब वे कोमागाटा मारू नामक जहाजसे भारत लोट पड़े, जहाँ उन्हें कैदियों के रूप में उतारा गया। कलकत्ताके पास बजबजमें उन्हें वापस अपने प्रान्तमें ले जाकर नजरबन्द करनेतक के लिए. सैनिक पहरे में रखा गया। लगातार इस तरह दुर्व्यवहार सहते-सहते वे विद्रोह कर उठे।
  2. श्रीमती बेसेंट और उनके साथी सर्वश्री अरंडेल तथा वाडिया १० जून, १९१७ को नजरबन्द किये गये थे।
  3. यह घोषणा श्री मॉण्टेग्युने भारत मन्त्रीका पद ग्रहण करनेके कुछ समय बाद ही १० अगस्त, १९१७ को की थी।