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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


भरती करने और युद्ध-ऋणके लिए धन वसूलनेके तरीकोंके बारेमें लायलपुरके एक वकील सरदार सन्तसिंहने निम्नलिखित बयान दिया है:

इस जिलेमें जबरदस्ती युद्ध-ऋण वसूल किया गया था। सरकारी उपाधिलोलुप लोगोंने खुद सरकारी सम्मान पानेके लिए जन-साधारणसे युद्ध-ऋण वसूला। प्रति मुरब्बा जमीनपर जबरदस्ती ३३ रुपये वसूल किये गये। किसीको नहीं बख्शा गया। जो आदमी दिवालिया करार दिया जा चुका था, उसे भी यह रकम चुकानी पड़ी। इस उगाहीका इतिहास बड़ा दिलचस्प है। यह प्रस्ताव किया गया कि जिसके पास एक मुरब्बा जमीन हो वह सरकारको ३३ रुपये दे जो कि एक एकड़ जमीनकी कीमत है। किसी मुरब्बेदारसे राय नहीं ली गई। यह प्रस्ताव उपाधि-लोलुप लोगोंकी ओरसे आया था। स्थानीय अधिकारियोंने इसे स्वीकार कर लिया, किन्तु सरकारने इसमें सुधार कर दिया। बजाय चन्देके, यह रकम सरकारने ऋणके रूपमें स्वीकार की। इस रकमपर मिलनेवाला ब्याज ऋण देनेवाले व्यक्तियोंको न मिलकर गाँवके सुधार-कार्यों में लगानेका निश्चय किया गया।

चक संख्या २६ के जी० एस० उत्तमसिंहने यह रकम देनमें आनाकानी की तो उसपर अभियोग लगाकर मुकदमा चला दिया गया। लेकिन रकम अदा करनेपर मामला वापस ले लिया गया।

साम्राज्यीय युद्ध सहायता कोष: प्रति मुरब्बा जमीनपर १० रुपयकी रकम नियत की गई। चूँकि बचनेका कोई तरीका नहीं था, इसलिए लोगोंको यह रकम देनी पड़ी।

लम्बरदारोंको रंगरूट भरती करके देना पड़ता था, और न देनेपर उन्हें दण्डस्वरूप लम्बरदारीके अधिकारोंसे वंचित कर देनेकी व्यवस्था थी। कईको तो सचमुच लम्बरदारीसे वंचित कर दिया गया। इस प्रकार एक रंगरूटका मूल्य ५०० रुपयेतक था। पुलिस लोगोंको पकड़कर उनसे शान्ति बनाये रखनके लिए मुचलका माँगती थी। मजिस्ट्रेट जमानतपर छोड़नसे इनकार कर देता था और लोगोंको हवालात भेज देता था, और जबतक वे रंगरूट देनेका वादा नहीं करते, उन्हें वहीं पड़े रहना पड़ता था। अभियुक्तों द्वारा रंगरूटके रूपमें भरती स्वीकार करनेपर उनके विरुद्ध फौजदारीके मुकदमे वापस ले लिये जाते थे। (बयान सं० ५१६)

इस प्रकार सर माइकेल ओ'डायरने पंजाबमें नवजीवनका संचार कर दिया और पंजाबियोंमें अभूतपूर्व एकताको भावना उत्पन्न कर दी। इसलिए जब गत अप्रैल माहमें उन्होंने पंजाबकी एकता और भारतकी एकताका प्रत्यक्ष स्वरूप देखा तो वे किंकर्तव्यविमूढ़से रह गये और ७ अप्रैलको उन्होंने झल्लाहट में अपना वह भाषण दिया जिसमें से कुछ अंश हम पहले ही उद्धृत कर चुके हैं। उन्होंने अपने लौह-शासनके दौरान पंजाबको