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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

रहा हो या सोच-समझकर किया गया हो, इसके बाद ही तत्कालीन डिप्टी कमिश्नरका तबादला हो गया और उनकी जगह कर्नल ओ'ब्रायन नियुक्त हुए। उनके आते ही भरतीकी रफ्तार एकदम बढ़ गई। अगस्त १९१८ में गुजरांवालामें आयोजित एक दरबारमें सर माइकेल ओ'डायरने भरतीके परिणामके बारेमें इस प्रकार कहा:

एक वर्ष पहलेतक गुजराँवालाके ३,३८८ आदमी फौजमें थे, अर्थात् कुल पुरुष जनसंख्या १५० के पीछे केवल एक आदमी। पिछले महीनेके अन्ततक उसके ११,७६५ आदमी फौजमें थे, अर्थात् मर्दोकी कुल जनसंख्यामें से प्रति ४४ पुरुषोंके पीछे एक आदमी, और फौजी-सेवाको उम्रके आदमियोंमें से प्रति १४ पुरुषोंके पीछे एक आदमी। इस प्रकार आपने एक सालके अन्दर ८,५०० जवान दिये हैं। यह सफल संगठनका एक शानदार उदाहरण है, जिसका मुख्य श्रेय आपके डिप्टी कमिश्नर कर्नल ओ'ब्रायन और उनके सहायकोंके प्रेरणाप्रद और उत्साहपूर्ण मार्गदर्शनमें आपकी जिला युद्ध-परिषद् द्वारा किये गये अविश्रान्त प्रयत्नोंको है, जिन प्रयत्नोंमें प्रभागीय भरती-अफसर मेजर बार्न्ज़ तथा उनके सहकारियोंने भी खासा हाथ बँटाया।

भरतीके काममें सफलता जिन तरीकोंसे प्राप्त की गई उनका विशद् विवरण हमें गुजराँवाला, मनियाँवाला, चूहड़खाना, हाफिजाबाद और अन्य स्थानोंके प्रत्यक्षदर्शियोंसे मिला है। हमने जो बहुत सारे बयान इकट्ठे किये हैं उन्हें हम परिशिष्टमें दे रहे हैं। यहाँ हम उनमें से केवल एक विशिष्ट बयानका कुछ अंश दे रहे हैं। यह बयान गुजराँवाला जिलेमें रतालीके हिस्सेदार, सरदार खाँने बैरिस्टर श्री लाभसिंह, एम० ए०, बार-एटलॉके सामने दिया था, जिन्हें साक्ष्य एकत्र करनेके लिए विशेष रूपसे नियुक्त किया गया था। सरदार खाँने कहा:

तहसीलदार बैशाखके महीनेमें हमारे गाँवमें आया। रातको डुग्गी पीटकर मुनादी करा दी गई कि सुबह सब लोग गाँवके दायरे [मैदान] में उपस्थित हो जायें। चूँकि यह फसलकी कटाईका मौसम था और साथ ही लोगोंमें जबरदस्ती फौज में भरती किये जानेका भय भी था, इसलिए सुबह थोड़ेसे ही लोग दायरेमें इकट्ठे हुए। इसपर तहसीलदारने लगभग ६० या ७० लोगोंपर जुर्माना ठोक दिया। जुर्मानकी कुल रकम १,६०० रुपये थी। लोगोंको फिर आदेश दिया गया कि वे गुजराँवाला स्थित मुख्य कार्यालयमें हाजिर हों, जो गाँवसे १८ मील दूर पड़ता है। जब नियत दिनको लोग वहाँ गये तो उन्हें एक कतारमें खड़ा कर दिया गया और उनमें से ७ जवानोंको छाँट लिया गया। यह तहसीलदार फतेहखाने खुद किया। बाकी लोगोंको गालियाँ दी गईं, मारा-पीटा गया और उनसे कहा गया कि वे और रंगरूट लायें। (बयान संख्या ५९१)।