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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

इस सबन्धमें सरकारी विज्ञप्तिमें कहा गया कि "उसने लोगोंका अपमान नहीं किया था और न उनकी भावनाओंको ही ठेस पहुँचाई थी।" अदालतने ऐसी कोई बात अपने निर्णयमें नहीं कही है कि जिसके आधारपर सरकारी विज्ञप्तिमें इस प्रकारका दावा किया जा सके। इसके विपरीत यदि सरकार मालगुजारी सहायकको प्राप्त और अदालतको दी गई अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जानकारीके आधारपर सचाईका पता चलाना चाहती तो उसने, हत्याके मुकदमेसे अलग, तहसीलदारके विरुद्ध लगाये गये दुर्व्यवहारके आरोपोंकी गहरी जाँच-पड़ताल कराई होती।

हमने कुछ बहुत ही व्यक्तिगत किस्मके साक्ष्य जमा किये हैं, जो चूँकि अत्यन्त गम्भीर ढंगके हैं इसलिए उन्हें हम इस रिपोर्टके साथ नहीं छाप रहे हैं। ये साक्ष्य गांधीजीने जमा किये हैं; और वे ही इस मामले में पंजाब सरकारसे लिखा-पढ़ी कर रहे हैं।

उसी जिले में एक दूसरा मामला हुआ जिसमें कहा जाता है कि लोगोंकी भीड़ने एक गाँव घेर लिया और सात आदमियोंकी गिरफ्तारी रोकनेकी कोशिश की। इस भीड़पर पुलिसने गोली चलाई और कुछ लोग हताहत हुए। अदालतने बचाव पक्षकी यह दलील रद कर दी कि लोग चूंकि फौजमें भरती होनेसे डरते थे, इसलिए उन्होंने विरोध किया था। लेकिन विरोध किया गया और गोली चलाई गई, यह तथ्य ही इस आरोपको सिद्ध करता है कि अत्याचारपूर्ण तरीके अपनाये गये थे।

मुल्तान डिवीजनमें कबीरवाला तहसीलकी कोर्ट ऑफ वार्डसके अन्तर्गत आनेवाली एक रियासतका मैनजर भरती करने के लिए खीजी कबीलेमें गया। वहाँ कुछ हाथापाई और मारपीट हुई, जिसमें कुछ लोग हताहत हुए। सरकारी वकीलने मैनेजरके विरुद्ध मुकदमा चलाने की अनिच्छा प्रकट कर दी। तथापि यह प्रश्न तो रह ही जाता है कि मैनेजर कबीलेवालोंके बीच क्यों गया, और उन लोगोंने किस बातका और किस कारण विरोध किया?

आंशिकरूपसे इस प्रश्नका जवाब हमें सर माइकेल ओ'डायर द्वारा प्रकाशित किये गये भरतीके आँकड़ोंसे मिल जाता है। दिसम्बर १९१७ के अन्त में मुल्तान जिलेमें भरती होनेवालों की कुल संख्या ७५९ यानी प्रति ५८६ पुरुषोंके पीछे १ थी। नवम्बर १९१८ के अन्ततक यह संख्या बढ़कर ४,६३६ यानी प्रति ९३ पुरुषोंके पीछे १ हो गई। ऐसी आश्चर्यजनक वृद्धि तो दबाव और जबरदस्तीके तरीकोंसे ही सम्भव हो सकती है। कमिश्नरने कहा:

मुझे लगता है कि चन्द लोगोंको छोड़कर जिलेके अन्य प्रमुख व्यक्तियोंने अपना कर्तव्य नहीं किया है। बजाय इसके कि वे अपने परिवारके लोगोंको फौजमें भरती करायें, उन्होंने अपनेसे छोटे तबकेके लोगोंको पैसा देकर या मजबूर करके भरती करानकी कोशिश की; कुछ मुखियोंने दबावके आपत्तिजनक तरीके अपनाये, जिसके परिणामस्वरूप कहीं-कहीं सार्वजनिक शान्तिभंग होनेकी वारदातें भी हुई। बहुत-से मामलोंमें दूसरे जिलों और डिवीजनोंके बाहरी लोगोंको अपने यहाँका दिखाकर उन्हें धोखेसे फौजमें भरती करनेकी सफल कोशिशें की गई। हालाँकि ऐसा करना सरकारी आदेशके विरुद्ध था।