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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट


शाहपुर जिले में तो दुर्भाग्यवश एक तहसीलदारकी हत्या ही कर दी गई। इस मामलेकी सुनवाईके लिए एक विशेष न्यायाधिकरण नियुक्त किया गया। जिलेके ४६ निवासियोंपर मुकदमा चला, जिनमें से ४ लोगोंको फाँसीको सजा दी गई और १२ लोगोंको कालेपानीकी, ८ लोग छोड़ दिये गये और १२ व्यक्तियोंको अन्तमें निर्दोष ठहराकर बरी कर दिया गया। सर माइकेल ओ'डायरकी टिप्पणी, जिसमें से हमने उक्त तथ्य' लिये हैं, में कहा गया है कि मृत तहसीलदार सैयद नादिर हुसैनपर लोगोंके साथ दुर्व्यवहार करनेके गोलमोल आरोप लगाये गये थे; और न्यायाधिकरणने सफाई पक्षको पूरी आजादी दी थी कि वह ऐसे तथ्योंसे सिद्ध करे जिनसे अपराधको गुरुता कम होती हो, लेकिन अलावा इस तथ्यके कि सैयद नादिर हुसैनने भरतीके जो तरीके अपनाये थे वे जबरन भरतीके तरीकों-जैसे थे, उसके विरुद्ध और कोई बात सिद्ध नहीं हो सकी, और न्यायाधिकरणने अपने निर्णय में कहा कि मृत व्यक्तिकी ख्यातिपर किसी अनाचारका कलंक नहीं लग सका है।

हमारी सम्मतिमें, यह स्वीकारोक्ति कि जबरन भरतीका तरीका अपनाया गया था, स्वयं ही निन्दनीय है। लेकिन सर माइकेल ओ'डायरने मुकदमेमें दी गई गवाहियाँ अवश्य पढ़ी होंगी। मृत तहसीलदारके पेशकार मुहम्मद खाँने सबूत पक्षकी ओरसे जो बयान अदालतमें दिया वह यह है:

तहसीलदारका तरीका यह था कि वह पटवारीसे गाँवके सब पुरुषोंकी एक सूची बनवा लेता था। यह सूची मिल जाने के बाद तहसीलदार उस गाँवमें जाता था और रंगरूटोंकी भरतीके मामले में कोई आपत्ति होती थी तो उसकी सुनवाई करता था। जिस परिवारमें तीन या चार भाई होते थे उससे वह फौजके लिए एक या दो आदमी देनेको कहता था।...उसने पड़ोसके गुलना इलाकेसे कुछ भगोड़ोंको पकड़कर गारदकी देखरेख में भरती करनेवाले अधिकारीके पास भिजवाया था।...तहसीलदारने इस सूची में कई नामोंके आगे यह भी लिख रखा था कि इन्हें रंगरूट चुना गया है।...इस इलाकेके जमींदार, तहसीलदारके आनेकी खबर सुनकर आमतौरपर भाग जाते थे, क्योंकि वे नौकरीके आदी नहीं थे और तहसीलदारके सामने आनेसे डरते थे।

विशेष न्यायाधिकरणके अध्यक्षने अपनी टिप्पणीमें निम्नलिखित विचार व्यक्त किया था:

नादिर हुसैन शाह जरूरतसे ज्यादा उत्साही था और व्यवहारकुशलताका सर्वथा अभाव होने के कारण वह इन उग्र लोगोंको, जो सेनामें नौकरी करनेके अभ्यस्त नहीं थे, प्रभावित नहीं कर सकता था।...इन लोगोंके पीछे सैनिक सेवाकी कोई परम्परा नहीं थी...। ६ फरवरीको पटवारीने चक लुढ़कांकी सूचियाँ तैयार की। सरकारने पुरुषोंकी ऐसी एक सूची बनानेका आदेश दिया जिसमें उनके सम्बन्ध आदि तथा आयु भी लिखी जानी थी। अतः ६ फरवरीको वहाँके पुरुषोंको यह मालूम हो गया कि उन्हें फौजमें भरती किया जानेवाला है, और इसके साथ ही वहाँ घबराहट और सनसनी फैल गई।