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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इस कार्यमें न्याय-व्यवस्थाकी सहायता भी ली गई है। चकवालके एक प्रथम श्रेणीके मजिस्ट्रेटने १९१७ के फौजदारी मुकदमा संख्या ८२ में एक अभियुक्तको इस टिप्पणीके साथ छोड़ दिया कि "अभियुक्त और उसके भाईने मिलकर 'अवर डे फण्ड' में ११० रुपये चन्दा दिया है, और जबानी समझौतेके अनुसार अभियुक्तको बरी किया जाता है।"

मेहरसिंह वल्द दौलतसिंह ने १९१७ के मुकदमा संख्या ३६ में उसी अदालतमें आय-करमें कमी कराने के लिए अर्जी दी थी। अर्जी रद करते हुए मजिस्ट्रेटने और बातोंके साथ यह भी कहा:

युद्धके कारण खच्चरोंसे भारी आय होती है, लेकिन आपत्तिकर्तान युद्ध-कोष या युद्ध-ऋणमें एक पाई भी नहीं दी है। उसके एक लड़का भी है जिसे उसने फौजमें भरती नहीं कराया है।

मुजफ्फरगढ़ जिले में लेहिया नामका एक गाँव है। वहाँ लोगोंकी एक बड़ी भीड़ने नायब तहसीलदारका घर घेर लिया, और चपरासी तथा गाँवके पुलिस कान्स्टेबलको मारा-पीटा। कुछ लोग गिरफ्तार किये गये। इनमें से ५२ लोगोंपर भारतीय दण्ड विधानके खण्ड १४७ के अन्तर्गत मुकदमा चलाया गया। अपील करनेपर दौरा जजने कुछ लोगोंको छोड़ दिया और कुछकी सजा घटा दी। दीरा जज श्री कोल्डस्ट्रीमने अपने फैसले में कहा कि "लोगोंके मनमें बिलकुल सही शिकायतें थीं जिन्हें वे किसी प्रकार व्यक्त करना चाहते थे।" उन्होंने आगे कहा:

यह सभी जानते हैं कि मुजफ्फरगढ़के जेलदारों और लम्बरदारोंपर युद्ध-प्रयासमें मदद देनेके लिए दबाव डाले जानेके कारण वहाँके अधीनस्थ अधिकारियोंने तवर्थ ऋण प्राप्त करने और रंगरूट भरती करनेके लिए प्रयत्न किये, जिनके परिणामस्वरूप कई स्थानोंपर बहुत जबरदस्त झगड़े हुए। यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि अकसर ये तरीके गैरकानूनी, आपत्तिजनक, दमनकारी तथा सरकारके मंशाके विरुद्ध थे। शहरोंसे दूर, आन्तरिक क्षेत्रोंमें लोगोंको ये तरीके असह्य मालूम हुए। ये कार्य सरकारी पक्षकी ओरसे तो सिद्ध किये नहीं जा सकते थे, और इस समय जिस ढंगका मामला विचाराधीन है उसमें बचावके रूपमें उनके प्रमाण प्रस्तुत किये जायें, ऐसी अपेक्षा करना बेवकूफी होगी। न्यायको रक्षाके लिए यह बात स्पष्ट कर देना जरूरी है, भले ही ऐसा करने में मुझे अदालती मिसिलसे बाहर जाना पड़े। जैसा कि मैंने पहले कहा, जिन तथ्योंका मैने उल्लेख किया है, वे सर्वज्ञात हैं।

जज महोदयने यह मत व्यक्त किया कि जिन दमनकारी तरीकोंका सहारा लिया गया वे सरकारके मंशाके विरुद्ध थे। हमने जिन-जिन संस्थानोंका दौरा किया उन सभी जगहोंपर हमें बताया गया है कि अपने अत्याचारपूर्ण व्यवहारके लिए लोगोंके बीच कुख्यात सरकारी अधिकारियोंमें से कई की, बजाय इसके कि उन्हें सार्वजनिक रूपसे फटकार बताई जाती, तरक्की कर दी गई है।