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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि कहीं यह भार ज्यादा रहा है, और कहींपर कम। जिन कबीलों और इलाकोंने इस दिशामें अपने कर्तव्यका पालन किया है, उनमें उन लोगोंके प्रति बहुत असन्तोष है जिन्होंने अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया है। जमींदार तबकेके लोग ऐसा सोचते हैं कि धन और जन दोनों ही मामलोंमें युद्धका ज्यादातर बोझ उन्हें ही उठाना पड़ रहा है, और ऐसे-बहुतसे वर्ग हैं जो धन या जन, दोनोंमें से कुछ भी नहीं दे रहे हैं। विभिन्न वर्गोंके ऊपर बोझकी असमानता हमेशा ही एक उचित शिकायतकी बात होती है। यह शिकायत उस समय और भी तीन हो उठती है जब आदमियोंकी जरूरत बराबर बढ़ती जाती है और आदमियोंकी माँग अनिवार्य होती जाती है।

कुछ क्षेत्रोंमें ऐच्छिक भरती प्रणाली विफल रही है, और इस स्थितिका सामना न करना कायरता होगी। हम वचन दे चुके हैं, और हमें समय रहते उसे पूरा करनेके लिए कदम उठाने होंगे। मेरा विश्वास है कि पंजाबमें तो बहरहाल यह भावना काफी प्रबल है कि जरूरी कोटा पूरा करनेके लिए प्रान्तके अन्दर और विभिन्न प्रान्तोंमें भी किसी-न-किसी रूपमें अनिवार्य भरतीका तरीका लागू किया जाना चाहिए; जैसे हर दस या पन्द्रह या बीस आदमियों के बीचसे एक तगड़ा-तन्दुरुस्त आदमी पर्ची डालकर भरतीके लिए चुना जाये। इन लोगोंके सामने यह विकल्प हो कि वे सेनामें भरतीसे बचना चाहें तो राज्यको कुछ आर्थिक दण्ड देकर मुक्ति पा लें। मुझे आशा है कि मेरे श्रोताओंका एक बड़ा बहुमत मुझसे सहमत है, और यदि ऐसा हो तो यह ठीक ही होगा कि यह प्रान्त, जो अभीतक मुख्य रूपसे युद्धका भार वहन करता आया है, अपने विचार स्पष्ट शब्दोंमें प्रकट करे। निर्णय करना तो खैर दूसरोंके हाथोंमें है। लेकिन सज्जनो, यह यन्त्र एकाएक तो गति नहीं पकड़ सकता, जब कि आदमियोंकी जरूरत तात्कालिक। ऐसी दशामें जो बात जरूरी लगती है वह यह कि सरकार अपने हाथमें ऐसी सत्ता ले ले जिसके बलपर वह विभिन्न प्रान्तोंको अपने-अपने कोटके आदमी देनेके लिए विवश कर सके, और इसके लिए पहलेसे ही सारी तैयारी कर ली जाये। हाँ, यह बात जरूर रहेगी कि यदि ये कोटे ऐच्छिकताके आधारपर पूरे हो जायेंगे तो बलात् भरती नहीं की जायेगी।

पंजाब सरकारने एक गश्ती पत्र जारी किया था जिसमें चन्दा प्राप्त करनेके लिए कुछ सुझाव दिये गये थे। इन सुझावोंको तभी कार्यरूप दिया जा सकता था जब लोगोंपर नाजायज दबाव डाला जाता। हम उस गश्ती-पत्रका एक अनुच्छेद नीचे दे रहे हैं:

मैं कहना चाहूँगा कि डिप्टी कमिश्नर, मुनासिब तौरपर किस शहरसे कितने धनकी अपेक्षा रखी जाये, इसका तखमीना लगाकर इस [धन-संग्रह] अभियानमें काफी मदद कर सकते हैं। इस काममें उन्हें स्थानीय आय-करके