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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

स्वतन्त्रताकी पवित्रताकी अवमानना नहीं की जा सकती और न गैर-कानूनी तौरपर खुले आम या गुप्त रूपसे बरती निर्दयता और अनुचित दबावकी ओरसे ही आँखें बन्द की जा सकती है। जो सबूत हमने इकट्ठे किये हैं और जो अदालती विवरण हमने पढ़े हैं, उनसे बिलकुल सिद्ध हो जाता है कि रंगरूट भरती करने और युद्ध-कोषके लिए चन्दा तथा ऋण प्राप्त करनेके लिए जो तरीके अपनाये गये वे नैतिक और सामाजिक दबावके तरीकेसे बिलकुल भिन्न थे। और ऐसी बात नहीं है कि सर माइकेल ओ'डायर इनसे अपरिचित थे। सच तो यह है कि अनिवार्य भरतीकी बात भी खुलेआम की गई, इसका सुझाव दिया गया, इसका समर्थन किया गया, और हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि खुली अनिवार्य भरती इस तथाकथित ऐच्छिक भरतीकी तुलनामें कहीं बेहतर होती। यह तथाकथित ऐच्छिक भरती वास्तवमें अनिवार्य भरतीसे भी खराब सिद्ध हुई, क्योंकि इसमें केवल कमजोरोंको ही दबाया गया और भरती होनेके लिए मजबूर किया गया, जब कि मजबूत लोग साफ बच गये।

आइए, हम देखें कि वास्तविकता क्या थी। दिल्ली-कार्यक्रम निश्चित होनेके बाद ही ४ मई, १९१८ को सर माइकेलने एक सभामें कहा: "नियमित सेनाके लिए २००,००० आदमी चाहिए--यदि सम्भव हो तो ऐच्छिक भरतीसे, लेकिन जरूरी हो तो अनिवार्य भरती करके।" उसी सभामें बोलते हुए कर्नल पॉपहम यंगने कहा:

इस प्रयत्नका कितना भार किसपर डाला जाये, यह निश्चय करते समय यह अवश्यंभावी है कि बहुत से लोगोंको राह दिखानी पड़े, यहाँतक कि मजबूर भी करना पड़े। हम ऐच्छिकताके आधारपर ही काम करना जारी रखेंगे। हम प्रत्येक जिले, तहसील या गाँवकी साधन-सम्पन्नताके हिसाबसे उसके लिए कोटा तय कर देंगे, और ज्यादातर जगहोंसे हमें बिना दबाव डाले जितनेकी जरूरत होगी, उतने आदमी मिल जायेंगे। लेकिन कर्त्तव्यको पुकारपर सामने आनेवाले लोगोंके साथ न्याय कर सकनकी दृष्टिसे हमें पर्याप्त सत्ता भी प्राप्त होनी चाहिए। हमें ऐसा कह सकनकी स्थितिमें होना चाहिए कि अगर किसी स्थान विशेषके लोग सेनाके लिए अपने कोटे के आदमी नहीं दे पायेंगे तो सरकार हस्तक्षेप करेगी और उनकी ओरसे वह खुद उतने आदमी चुनकर फौजमें भरती कर लेगी।

इसी सभामें सर माइकेल ओ'डायरने निम्नलिखित बात कही:

भरतीकी बात समाप्त करनेसे पहले मैं अनिवार्य भरतीके विषयमें कुछ शब्द कहूँगा। निःसन्देह, पाँच लाख सैनिकोंकी आवश्यकता पूरी करनेके लिए कोई भी भारतके सारे पुरुष समाजको अनिवार्य रूपसे फौजमें भरती करनेकी बात नहीं सोचता; और अगर भरतीको अनिवार्य बनाये बिना हमारा काम चल जाये तो मुझसे ज्यादा खुशी किसीको नहीं होगी। लेकिन हालाँकि पंजाबने अभीतक ऐच्छिक भरतीके रूपमें शानदार योग दिया है, फिर भी हमें यह तथ्य स्वीकार करना पड़ेगा कि इससे उसपर बहुत अधिक भार पड़ा है और यह भी

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