पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/१६९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३९
पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

राजद्रोह फैलानेवालोंमें से किसीपर भी चल रहे मुकदमेको वकीलकी चतुराईसे लम्बा खिंचने देना या दण्ड-विधानमें सजा दी जानपर अपीलकी जो व्यवस्था है उसके प्रयोग द्वारा उसे दीर्घ कालतक चलते रहने देना अत्यन्त अवांछनीय है। इसलिए उन्होंने मंजूरीके लिए एक अध्यादेशका मसविदा पेश किया है जिसे स्थानीय सरकारकी मंजूरीसे इन मामलोंमें लागू करनेकी व्यवस्था है : (क) उन मामलों में, जिनका स्वरूप राजनीतिक या अर्ध-राजनीतिक हो, अदालती कार्रवाई संक्षिप्त करनेके लिए; (ख) इन मामलों में अपीलकी छूट न देनके लिए; (ग) प्रभावित वर्गके लोगोंसे सामान्य कानूनमें वो गई विधिको अपेक्षा अधिक द्रुतगामी विधिसे जमानत लेनेके लिए; (घ) विप्लवी अपराधियोंको सहयोग और शरण देनेवाले ग्रामप्रधानों को सजाएँ देने और ग्रामीणोंपर जुर्माने करनेके लिए।

उन्होंने प्रान्त में सर्वश्री तिलक और पालके[१] प्रवेशपर रोक लगाकर भारत रक्षा कानून द्वारा दी गई सत्ताका दुरुपयोग किया। उन्होंने बिना किसी कारणके सैकड़ों स्थानीय लोगोंको नजरबन्द किया। उन्होंने देशी भाषाओंके पत्रोंके स्वतन्त्र मत-प्रकाशनपर रोक लगा दी और पंजाबसे बाहर सम्पादित होनेवाले "न्यू इंडिया," "अमृतबाजार पत्रिका" और "इंडिपेंडेंट" जैसे राष्ट्रवादी पत्रोंका वितरण इस प्रान्तमें रोक दिया। उन्होंने पहलेसे सेंसर किये हुए अखबारोंका प्रचार भी बन्द कर दिया और ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी, जिससे पंजाबके लोगोंके लिए स्वतन्त्र विचारोंका मुक्त आदान-प्रदान या समाचारपत्रोंमें अपने कष्टोंका निर्बाध प्रकाशन लगभग असम्भव हो गया और तब मुक्त भाषण और मुक्त लेखनपर रोक लगाकर स्वयं यह खयाल करने लगे और बाहरके लोगों को भी यह बताया कि पंजाबके लोग उनके शासन में सबसे अधिक सुखी हैं।

उन्होंने लोगोंकी राजनीतिक आकाँक्षाओंको कुचलनेके लिए संकटकालीन कानूनका ही दुरुपयोग नहीं किया; बल्कि लोकसेवी लोगोंको बुलाकर धमकियाँ और चेतावनियाँ देकर शासकके रूप में अपने पदका भी दुरुपयोग किया। लाला दुनीचन्दको, जो निरन्तर लोकसेवा करते रहे हैं, सर एम० ओ'डायरके शासनके इस पक्षका व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त हुआ है। उन्होंने हमें एक वक्तव्य दिया है। इसमें वे कहते हैं:

भारतीय संघके मन्त्रीके रूपमें मुझे सार्वजनिक सभाएँ बुलानी होती थीं और सूचनाएँ जारी करनेके बाद मुझे सरकारके मुख्य सचिव या लाहौरके कमिश्नर मिलने के लिए बुलाते थे और वे सभाएँ करने में मेरे मार्गमें सदा ऐसे अड़ेंगे लगाते थे कि यदि मेरी जगह कोई दूसरा व्यक्ति होता तो लाहौरमें कभी सार्वजनिक सभाएँ न बुलाता। मुख्य सचिव और कमिश्नरने, सम्भवतः सर माइकेल ओ'डायरकी ओरसे, मुझसे अनेक बार कहा कि मैं सभामें प्रान्तके बाहरके किन-किन वक्ताओंको निमन्त्रित करूँ और किन्हें नहीं।

  1. विपिनचन्द्र पाल,(१८५८-१९३२); बंगालके शिक्षाशास्त्री, ओजस्वी वक्ता और राजनीतिक नेता।