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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट


अब हम सर माइकेल ओ'डायरकी प्रशासनकी संक्षिप्त रूपरेखा देना चाहते है। इससे यह प्रकट हो जायेगा कि उन्होंने किस प्रकार प्रत्येक वर्गको अपना विरोधी बना लिया और किस प्रकार शिक्षित वर्गोंका, जनसाधारणपर प्रभाव घटानेका प्रयत्न किया।

जब वे सन् १९१३में पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त किये गये उस समय उन्हें पंजाबका खासा अनुभव था। और इस पदपर आने के बाद उन्होंने अपने प्रशासनको कीर्ति बढ़ानेके लिए जो तरीका चुना वह था सुधार-सम्बन्धी प्रस्तावोंके प्रति तिरस्कारपूर्ण वचन कहना। नियुक्तिके कुछ सप्ताह बाद ही एक मानपत्रका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा:

इस प्रान्तका शासन-भार संभालनेके बाद थोड़े ही समयमें मुझे इस सम्बन्ध अनेक उत्तम और सद्भावनापूर्ण सुझाव मिले हैं कि लोगोंकी आकांक्षाकी पूर्तिके लिए तथा जनताको स्वशासन प्रदान करने और कार्यपालिका तथा न्यायपालिकाके कार्योको अलग करने की दिशामें जो प्रयत्न किये जा रहे हैं उनमें गति लानेके लिए मुझे किस तरह शासन चलाना चाहिए और क्या कुछ करना चाहिए। इसी तरह राज्यको नीतिसे सम्बन्धित अन्य मामलोंके बारेमें भी मुझे कई सुझाव प्राप्त हुए हैं। इस प्रकारको अस्पष्ट कल्पनाओंका अपना महत्त्व होता है और वे दिलचस्प भी होती हैं; किन्तु यदि प्रशासनके कर्तव्योंपर जोर देने के साथ-साथ नागरिकों और प्रजाजनोंके कर्तव्योंपर भी जोर दिया जाता तो उनका महत्त्व और भी बढ़ जाता। सरकार जनताके जान और मालकी रक्षा करने के अपने मुख्य कर्तव्यको किस प्रकार अधिक अच्छी तरहसे निभा सकती है और लोगोंमें समाजके प्रति अपना कर्तव्य पूरा करनेकी भावना कैसे पैदा की जा सकती है, यदि इस सम्बन्धमें कोई व्यावहारिक सुझाव दिया जाता तो मैं इसका स्वागत करता और यदि अब भी दिया जाये तो मैं उसका स्वागत करूंगा। मेरी रायमें नीति-सम्बन्धी अन्य सब प्रश्न इनके सम्मुख गौण हैं और जबतक ये वो कर्तव्य पर्याप्त रूपसे पूरे नहीं कर दिये जाते तबतक वे स्थगित रखे जाने चाहिए।

इस प्रकार उन्होंने अपने श्रोताओंको यह चेतावनी दी कि वे जिन सुधारोंको देशको प्रगतिके लिए महत्त्वपूर्ण मानते हैं वे "अस्पष्ट कल्पनाएँ" हैं और वे अपने श्रोताओंसे यह चाहते हैं कि वे जान और मालको सुरक्षित करने और समाजके प्रति कर्त्तव्यकी भावना पैदा करने में उनकी सहायता करें। लेकिन इस सम्बन्धमें हर आम आदमीका तो खयाल यही होगा कि जान और मालको तो अब काफी सुरक्षा प्राप्त हो चुकी है और यह सुरक्षा ब्रिटिश राज्यकी एक अत्यन्त गौरवास्पद' उपलब्धि मानी जाती है और उनके श्रोताओंमें सुधारोंकी जो तीव्र लालसा है, उससे समाजके प्रति उनकी कर्तव्यकी भावना व्यक्त होती है। उसी भाषणमें उन्होंने देशी भाषाओंके समाचारपत्रोंको भी उपदेश दिया। इसके बाद ही प्रेस ऐक्टके[१] अन्तर्गत कार्रवाई की गई। देशी भाषाओंके अनेक

  1. यह भारत सरकार द्वारा १९१० में पास किया गया था।