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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देकर भी सन्तोष नहीं हुआ। वे तो ६ अप्रैलके उस महान् प्रदर्शनके सम्बन्धमें भी, जिसका स्वरूप उपवासके कारण हजारों लोगोंके लिए लगभग धार्मिक बन गया था, अपनी भावना व्यक्त करनेपर आमादा थे। उन्होंने अपने ही ढंगसे उसका उपहास करते हुए कहा:

अभी हालमें लाहौर और अमृतसरमें जो बच्चोंके खेल-जैसे प्रदर्शन किये गये उनका अगर कोई मतलब था तो बस यह प्रकट करना कि अज्ञानी और भोलेभाले लोग, जिनमें हजारमें से एक भी इस कानूनके बारेमें कुछ नहीं जानता, कितनी आसानीसे गुमराह किये जा सकते हैं। जो लोग उन्हें सिर्फ गुमराह ही करना चाहते हैं, उनके ऊपर भारी जिम्मेदारी आती है। उन्हें मैं राष्ट्रपति लिंकनकी इस प्रसिद्ध उक्तिको याद दिलाता हूँ: "यदि आप बहुत ही चालाक और सिद्धान्तहीन हैं तो आप सब लोगोंको कुछ समयतक और कुछ लोगोंको सदैव गुमराह कर सकते हैं। किन्तु आप सब लोगोंको सदैव गुमराह नहीं कर सकते।" जो लोग जनताके विवेकको जागृत नहीं करते, उनके अज्ञानसे लाभ उठाते हैं, उनको किसी-न-किसी दिन इसका हिसाब अवश्य चुकता करना होगा।

७ अप्रैलको भारतमें अन्य किसी प्रान्तके गवर्नरने जनताका मजाक नहीं उड़ाया। सर माइकेल ओ'डाय रके सिवा सभीने न्यूनाधिक ६ अप्रैलका अर्थ समझा; किन्तु सर माइकेलकी इच्छा यह थी कि जो लोग उनके खयालसे लोगोंके विवेकको जागृत नहीं कर रहे, उनके अज्ञान या रोषसे लाभ उठा रहे हैं, उन्हें "अपना हिसाब चुकता करनेका एक अवसर" दिया जाये। हमें बड़े दुःखके साथ आगेके पृष्ठोंमें कर्त्तव्यवश यह बताना होगा कि किसी तरह, किसी औरने नहीं बल्कि स्वयं सर माइकेलने लगभग सदा लोगोंके विवेकको जगानेके बजाय उनके अज्ञान और जोशको भड़काया, और जनता तथा अपने ऊपरके अधिकारियोंको गुमराह करके उन्होंने अपने ऊपर कितनी भारी जिम्मेदारी ली है। हमें दुःखके साथ कर्त्तव्यवश यह भी बताना होगा कि "एक दिन इसका हिसाब अवश्य चुकता करना होगा" से उनका अभिप्राय क्या था। उन्हें फिर १० तारीखको बोलनेका अवसर मिला। उन्होंने यह भाषण अमृतसर और लाहौरमें जो कुछ हुआ था, उसकी खबर मिलनेपर सायंकाल पंजाबकी लड़त जातियोंके प्रतिनिधियोंके सम्मुख दिया था, जो मांटगुमरी भवनमें उन्हें मानपत्र देनेके लिए इकट्ठे हुए थे। हम इस भाषणकी एसोसिएटेड प्रेस द्वारा भेजी पूरीकी-पूरी रिपोर्ट यहाँ दे रहे है:

मुझे यह सोचकर प्रसन्नता होती है कि आज शामको जो उत्तेजनात्मक खबर मिली है उसके बावजूद हम आज रात यहाँ इकट्ठे हुए हैं। मुझे इस अनुपम समारोहमें महान् लड़त जातियों--पंजाबके मुसलमानों, सिख और हिन्दुओं--के इतने अधिक प्रतिनिधियोंसे मिलकर गर्व हुआ है। ये जातियाँ यद्यपि उत्पत्ति, धर्म और रीति-रिवाज में भिन्न है, फिर भी ये आपसमें एक-