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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्ध कांग्रेसकी रिपोर्ट

वह इन आन्दोलनकारियोंकी उपेक्षा कर सकती थी, किन्तु उन नौजवान और नादान लोगोंकी रक्षा करना सरकारका कर्तव्य है, जिन्हें ये लोग स्वयं अलग रहकर, शरारत और जुर्म करने के लिए भड़का सकते हैं। इसलिए मैं इस अवसरपर उन लोगोंको, जिनका इस प्रान्तमें राजनीतिक गतिविधियोंसे सम्बन्ध है, यह चेतावनी देता हूँ कि वे जो सभाएँ आयोजित करेंगे, उनके समुचित संचालन, उन सभाओं में प्रयुक्त होनेवाली भाषा और उन सभाओंके परिणामोंके लिए उन्हींको जिम्मेदार माना जायेगा। इन शर्तोंके अलावा सरकार जनताके सार्वजनिक सभाएँ करने के अधिकारमें किसी भी प्रकारसे हस्तक्षेप करना नहीं चाहती; किन्तु इस बातको सभी जानते हैं कि जो लोग, सर्वथा उचित कारणोंसे भी, ऐसी सभाएँ संगठित करते है उनमें प्रायः इतना बल या नैतिक साहस नहीं होता कि वे उपतर वक्ताओंपर अंकुश रख सकें। और मेरा खयाल है, तथा जो ठीक ही है कि ये थोड़से चीख-पुकार मचानेवाले आन्दोलनकारी बराबर जिस असंयत और प्रमादपूर्ण भाषाका प्रयोग करते हैं उसके कारण संजीदा और समझदार लोग अपनी इज्जतका खयाल करके, ऐसी सभाओंमें जानेसे बचते हैं। अतः इन सभाओंपर जिस चीजका संयतकारी प्रभाव हो सकता है, वह या तो होती ही नहीं या होती है तो उसका प्रयोग नहीं किया जाता। इसी कारण मुझे यह चेतावनी देनेकी आवश्यकता हुई है तथा यह अखबारों और वक्ताओं दोनोंके लिए है। मैं पूरी गम्भीरताके साथ यह पूछना चाहता हूँ कि क्या यही वह शान्त और उचित वातावरण है जिसकी संवैधानिक सुधारोंका मार्ग तैयार करनेके लिए आवश्यकता है? निश्चय ही नहीं; और जो लोग यह अस्वस्थ वातावरण उत्पन्न कर रहे हैं वे, जिस सुधार-सम्बन्धी ध्येयका समर्थन करना चाहते रहे हैं, उसके घोरतम शत्रु हैं। सौभाग्यकी बात है कि वे जितनी चीख-पुकार मचाते हैं, उसकी तुलनामें उनका असर बहुत कम है। उनकी आवाज पंजाबकी आवाज नहीं है।

उसके बाद उन्होंने विस्तारसे यह बताया कि किस तरह रौलट अधिनियम[१] बिलकुल निर्दोष है। उसके सम्बन्धमें वे यह बिलकुल गलत बात कह गये कि उससे पुलिसको मनमानी गिरफ्तारी, तलाशी या दस्तन्दाजीके अधिकार नहीं मिलते। जिसने भी रौलट अधिनियम पढ़ा है वह जानता है कि उसमें अवश्य ही ऐसे अधिकार हैं, और चूंकि उसमें ऐसे अधिकार दिये गये है, इसलिए लोगोंने उसका इतना कड़ा विरोध किया है। किन्तु सर माइकेलको रौलट अधिनियमका ऐसा कपोलकल्पित विवरण

  1. यह मार्च १९१९ के तीसरे सप्ताहमें भारत-रक्षा कानूनके समाप्त हो जानेसे उत्पन्न स्थितिका सामना करनेके लिए अस्थायी कानूनके रूपमें पास किया गया था और इसके द्वारा स्थानीय सरकारोंको ऐसे लोगोंको, जिनके सम्बन्धमें यह खयाल हो कि उनका सार्वजनिक सुरक्षाके लिए खतरनाक अपराधोंसे कुछ सम्बन्ध है, गिरफ्तार और नजरबन्द करनेके निरंकुशतापूर्ण अधिकार दिये गये थे।