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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अध्याय २

सर माइकेल ओ'डायरका शासन

जिस दिन भारत-भरमें हड़ताल हुई उसके एक दिन बाद अमृतसर और लाहौरमें निहत्थे लोगोंपर गोलियाँ चलाये जाने और अमृतसरके हत्याकांडों और अग्निकांडोंसे तीन दिन पहले, ७ अप्रैल को एक सार्वजनिक भाषण में सर माइकेल ओ'डायरने यह कहा था:

सज्जनो, मेरी अक्सर आलोचना की जाती है कि मैं हमेशा पंजाबकी उपलब्धियोंकी चर्चा करता रहता हूँ। किन्तु पंजाबपर मुझे जो गर्व है उसका आधार कोई संकीर्ण क्षेत्रीय भावना नहीं है। मैं पन्द्रह वर्ष पंजाबसे बाहर रहा हूँ और इस बीच मैने भारतके दूसरे बहुतसे भाग भी देखे हैं। दरअसल में कह सकता हूँ कि मैंने बहुत-से शहर, तरह-तरहके लोग और उनके रीति-रिवाज, तरह-तरहकी आबोहवा तथा कौंसिलें और सरकारें देखी है और उनका ज्ञान प्राप्त किया है। किन्तु मैंने यहाँ राजाओंके महलोंसे लेकर किसानोंके झोपड़ोंतक जो गुण देखे हैं, वे मुझे अन्यत्र कहीं देखनेको नहीं मिले। मैंने देखा है कि मैं पंजाबीसे, चाहे वह किसी भी वर्गका हो या उसकी स्थिति कैसी भी हो, एक मनुष्यके नाते बिना किसी सन्देह या अविश्वासके मिल सकता हूँ। मैंने देखा है कि पंजाबका जनसाधारण राजभक्त है किन्तु चापलूस नहीं है। बहादुर है किन्तु शेखीखोर नहीं है; साहसी है किन्तु स्वप्नदर्शी नहीं है। प्रगतिशील है किन्तु झूठे आदर्शोंके लिए काम नहीं करता और न छायाके पीछे भागता है। इन्हीं गुणोंके कारण पंजाब भारतके समस्त प्रान्तोंमें "सर्वाधिक सम्मानित" प्रान्त बन गया है और इन्हीं गुणों और नैतिक साहसके कारण, जिसकी आनेवाले दिनों में अत्यन्त आवश्यकता होगी, पंजाब प्रगति और समृद्धिके मामले में अगुआ रहेगा।

उन दिनों सर ओ'डायर यहाँसे प्रस्थान करनेका विचार कर रहे उद्धरण उनके इस इच्छित प्रस्थानके पूर्व कोन्सिलमें उन्होंने जो अन्तिम भाषण दिया था, उसीसे लिया गया है।

किन्तु अपने उसी भाषणमें उन्होंने यह भी कहा था:

इस प्रान्तकी सरकार कृतसंकल्प है और रहेगी कि यहाँ जो जनसुरक्षा युद्ध-कालमें इतनी सफलताके साथ कायम रखी गई है, उसमें शान्ति-कालमें भी कोई विघ्न उत्पन्न न हो। इसलिए लाहौर और अमृतसर कुछ लोगोंके विरुद्ध भारत रक्षा कानूनके[१] अन्तर्गत कार्रवाई की गई है। ये लोग किसी भी इरादेसे सही, लोगोंको भावनाको सरकारके विरुद्ध खुल्लम-खुल्ला उभार रहे थे। जिस ब्रिटिश सरकारने विदेशी शत्रुओं और आन्तरिक विद्रोहोंको कुचल दिया है,

  1. पद 'आवश्यक युद्धकालीन कानून' के रूपमें १९१५ में पास किया गया था।