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हिंसा बनाम अहिंसा

हिंसा नहीं, अहिंसा है। मैं आशा करता हूँ कि अधिकारीगण स्थितिको गलत रूपमें नहीं समझेंगे; उस स्पृहणीय भावनाको समझने में चूक नहीं करेंगे जो इस पूरे प्रदर्शनके पीछे व्याप्त थी और उसी तरह इस प्रस्तावके पीछे विद्यमान सराहनीय भावनाको भी समझने में चूक नहीं करेंगे। मेरे विचारसे तो यह प्रस्ताव ऐसा है कि इस देश या साम्राज्यके किसी भी सच्चे प्रेमीको इसपर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। मैं यह आशा भी करता हूँ कि यह आन्दोलन जिस रूपमें विकसित हो रहा है, उसे भी वे देखेंगे। मैं आशा करता हूँ कि हममें जो अनुकरणीय धैर्य, आत्मसंयम और अनुशासन विकसित हो रहा है, उसका उनपर समुचित प्रभाव पड़ेगा और वे साम्राज्य सरकारको बतायेंगे कि यद्यपि इस देशमें आज प्रशंसनीय रूपसे शांति व्याप्त है लेकिन साथ ही उसके पीछे एक गम्भीर संकल्पका भाव भी है जो उत्तरमें 'ना' को स्वीकार नहीं करेगा। मुझे आशा है कि सरकार गत अप्रैल माहके अन्यायकी पुनरावृत्ति नहीं करेगी और न इस तरहकी किसी गलतफहमीमें ही रहेगी कि आज लोगोंमें जो एक अदम्य भावना व्याप्त हो चली है और जिस भावनाके कारण वे सब-कुछ सह सकते हैं लेकिन अपमान, अप्रतिष्ठा और पराजय नहीं स्वीकार कर सकते, उस भावनाको वह अत्याचारके बलपर कुचल देगी [१]

लिबरल लीग-जैसी प्रतिष्ठित संस्था पूरा विचार किये बिना हड़तालसे पूर्व ही उसकी भर्त्सना करे, यह बड़े दुःखकी बात है। जो जाति आज इतनी व्यथासे पीड़ित है और जिसे अपने सामने निराशाके अतिरिक्त शायद और कुछ दिखाई नहीं दे रहा है, उसे अपनी भावनाओंको व्यवस्थित और संयमित ढंगसे व्यक्त करनेका कोई तरीका तो चाहिए ही। अभी कुछ दिन पहलेतक हम जो-कुछ सोचते थे, उसे बोलने या लिखनेसे डरते थे, इसलिए हमारी भावनाएँ हमारे मन में ही दबी रह जाती थीं, और उनमें सडाँध पैदा हो गई थी, क्योंकि वे जनमतको स्वस्थ प्रकाश और वायुसे वंचित करती थीं। यही कारण था कि हमारे देश में गुप्त रूपसे एक विप्लववादी आन्दोलन चल रहा था। लेकिन ईश्वरकी कृपासे, अब लगता है, हम उन बुरे दिनोंसे निकल चुके हैं। अब हम बिना किसी डर-भयके खुले तौरपर सोचने, बोलने, और लिखनेका साहस करने लग गये हैं। हाँ, खुलेपनमें मनुष्य जातिको जितना संयम बरतना चाहिए उतना संयम हम अवश्य बरतते हैं। मैं लिबरल लीगके सदस्योंसे और अन्य जो भी व्यक्ति या संस्थाएँ वैसे विचार रखती हों, उन सबसे अनुरोध करता हूँ कि इस सीधी-सी बातको स्वीकार करें और कायरतापूर्ण सावधानीकी अपेक्षा साहस तथा निर्भीकताको श्रेष्ठ समझें। अगर वे हमारे राष्ट्रीय जीवनमें प्रतिदिन आविर्भूत होनेवाली असंख्य शक्तियोंका उपयोग राष्ट्रोत्थानके लिए करना चाहते हों, अगर वे एक नवनिर्माणकी वेदनामें शरीक होनेका गौरवमय पद प्राप्त करना चाहते हों, तो वे समयके संकेतोंकी उपेक्षा न करें, नई पीढ़ीके विकासकी ओरसे आँखें बन्द न करें, उसकी तीव्र आशाओं और आकांक्षाओंपर तुषारपात न करें, बल्कि इस पीढ़ीके नौजवान, उत्साही और आत्म-बलिदानी दुःसाह-

  1. यहाँ मूल अंग्रेजीमें कुछ शब्द छूट गये प्रतीत होते हैं। उन्हें अनुमानसे पूरा करके अनुवाद किया गया है।