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८९. हिंसा बनाम अहिंसा


खिलाफत-दिवस आया और गया। यह सत्याग्रहकी अर्थात् सविनय अवज्ञाकी नहीं बल्कि सत्य और अहिंसाकी बहुत ही बड़ी सफलता और पूर्ण विजय है। इस १९ मार्चकी हड़तालके[१] समान स्वेच्छाप्रेरित हड़ताल और कभी नहीं हुई है--सो इस तरह कि लोगोंको जितना समझाना-बुझाना, जितना प्रचार करना था, सब १९ के पूर्व ही किया गया। समितिने[२] मिल-मजदूरोंसे हड़ताल न करनेको कहकर आश्चर्यजनक आत्म-संयमका परिचय दिया। उसने जितनी कुशल और चुस्त व्यवस्था की थी और जिस स्पष्टताके साथ हड़तालको स्वेच्छा-प्रेरित बनानेकी बातको स्वीकार किया, उसके लिए वह अधिक से अधिक प्रशंसाकी पात्र है। अगर लोग बराबर वैसे ही आत्मसंयम और अनुशासनसे काम लेते रहें जैसे आत्मसंयम और अनुशासनका परिचय उन्होंने १९ तारीखको दिया और अगर साथ-साथ उनमें बलिदानकी भावना भी उतनी ही हो तो खिलाफतके सम्बन्धमें हमारी आशाएँ फलीभूत होकर रहेंगी। सिर्फ साल-भर पहले किसी भी व्यक्तिको यह विश्वास नहीं हो सकता था कि मुसलमानोंके बीच जो धर्मान्ध लोगोंका एक वर्ग है, वह जीवन-मरणके इस सवालपर शान्तिसे काम ले सकता है और सो भी एक ऐसे दिन जब निठल्ले लोगोंके पास कोई काम-धन्धा न हो। लेकिन जहाँ प्रार्थना है वहाँ निठल्लापन नहीं हो सकता। सभीको यह हिदायत दी गई थी कि कोई भी झगड़ा-टंटा न करे, क्रोधसे काम न ले; इसके विपरीत हर व्यक्ति न्यायकी प्रतिष्ठाके लिए प्रार्थना करे। यह सच है कि वास्तवमें सभीने प्रार्थना नहीं की, लेकिन प्रार्थनाकी भावना सर्वत्र व्याप्त थी और लोग जिस भावनासे प्रभावित थे वह प्रतिशोध, क्रोध और उत्तेजनाकी भावना नहीं बल्कि यही प्रार्थनाकी भावना थी। और इस तरह हमने यह आश्चर्यजनक दृश्य देखा कि हड़तालका दिन भी ऐसे सामान्य दिनोंकी तरह ही बीत गया जब हर कोई शान्ति बनाये रखनेकी आशा करता है। बम्बईकी विशाल सभाका दृश्य, जिसमें कोई तीस हजार लोग मौजूद थे, देखने लायक था। जिन हजारों लोगोंने सभामें वक्ताओंके भाषण सुने उनके चेहरोंपर दृढ़ताका भाव था, फिर भी उन्होंने न तो हर्षध्वनि की और न किसी संयमहीन तरीकेसे अपनी भावना ही प्रकट की। संयोजक लोग इस बातके लिए हार्दिक प्रशंसाके पात्र हैं कि उन्होंने इस सभाका इस ढंगसे संयोजन किया कि उसमें आधुनिक सभाओंवाली अशान्ति, उत्तेजना और अव्यवस्थाके बदले लोगोंको प्राचीन कालकी सभाओंवाली शान्ति, स्थिर संकल्प और व्यवस्थाके दर्शन हुए। जहाँ शान्ति, धीरज, संकल्प और व्यवस्था सत्याग्रहके लिए आवश्यक गुणोंको विकसित करते हैं वहाँ शोर-गुल, उत्तेजना और अव्यवस्था हिंसाका मार्ग प्रशस्त करते हैं। और इस महती सभा और सफल हड़तालका सन्देश

  1. बम्बईके हिन्दू दुकानदारोंने खिलाफत दिवसपर स्वेच्छासे हड़ताल रखी थी
  2. खिलाफत समिति, बम्बई।