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सत्याग्रह-सप्ताहपर विचार

करना अज्ञानियों और अन्धविश्वासियोंका काम है। उपवास और प्रार्थना शुद्धिकरणको सबसे सक्षम प्रक्रिया है और जो चीज हमारी शुद्धि करती है वह हमें अपने कर्त्तव्यनिर्वाह और लक्ष्य-सिद्धिके लिए अधिक सामर्थ्य तो प्रदान करती ही है। अतएव अगर कभी-कभी उपवास और प्रार्थनाका वांछित प्रभाव होता नहीं दिखता तो उसका कारण यह नहीं है कि उनमें कुछ तत्त्व नहीं है, बल्कि यह है कि हमने सच्ची भावनासे प्रार्थना और उपवास नहीं किया।

इस प्रकार अगर कोई एक ओर तो उपवास करता है और दूसरी ओर दिनभर जुआ खेलता है--जैसा कि जन्माष्टमीके अवसरपर बहुत-से लोग करते है तो स्वभावतः वह न केवल उपवासके उस लाभसे वंचित रह जाता है जो अपेक्षाकृत अधिक शुद्धिके रूप में प्राप्त होता है, बल्कि इसके विपरीत ऐसे दुर्वृत्तिपूर्ण उपवाससे उसका और पतन ही होता है। सच्चे उपवासके लिए यह जरूरी है कि उपवास करनेवाले व्यक्तिमें शुद्ध विचारोंको ग्रहण करनेको तत्परता हो और शैतानके सभी प्रलोभनोंका प्रतिरोध करनेका संकल्प हो। वस्तुतः उसे इस चीजसे अपनेको एकाकार कर देना चाहिए। कोई प्रभुनामकी माला जपे और उसका मन चारों ओर भटकता रहे तो यह तो बिलकुल बेकारको चीज है। अत: हम आशा करते है कि राष्ट्रीय उपवास और प्रार्थनाका आगामी सप्ताह सर्वत्र एक वास्तविकताका रूप धारण करेगा, वह सिर्फ औपचारिक नियम-निर्वाहका सप्ताह बनकर नहीं रह जायेगा।

देशके विभिन्न भागों में हजारों-लाखों मुसलमान जुमा मस्जिदोंमें जाकर सत्यकी विजयके लिए अपने अन्तःकरणसे प्रार्थना कर रहे हैं--इस भव्य दृश्यके[१] कारण खिलाफतके सवालका न्यायपूर्ण हल जितना अधिक सम्भव हो गया उतना और किसी चीजसे नहीं हुआ था। हमें यह आश्वासन देने में कोई संकोच नहीं कि सिर्फ प्रार्थनाके बलपर खिलाफतके सवालका उचित हल प्राप्त किया जा सकता है। हम यह जानते हैं कि प्रार्थनाके पक्षमें हम जो यह तर्क दे रहे हैं वह दोनों ओर लागू होता है, क्योंकि प्रार्थनाका मार्ग जैसे हमारे लिए खुला हुआ है, वैसे ही हमारे शत्रुओंके लिए भी। लेकिन यह तर्क प्रार्थनाके विरुद्ध नहीं जायेगा। इससे सिर्फ हमारी यह कमजोरी प्रकट होगी कि हमारा प्रार्थनाका मूल्यांकन प्रार्थनाके फलाफलसे प्रभावित है। ईश्वरसे शर्तबन्दी नहीं की जा सकती। इतना जान लेना काफी है कि प्रार्थना राष्ट्र और व्यक्तिके विकासमें अनन्त कालसे एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधन रही है। ईश्वर करे, सत्याग्रह सप्ताहके अवसरपर उपवास और प्रार्थनाको परम्पराएँ अपनी समस्त मूल गरिमाके साथ प्रकट हों।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २४-३-१९२०
  1. तात्पर्य १९ मार्चके खिलाफत दिवसके दृश्यसे है।