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८८. सत्याग्रह-सप्ताहपर विचार[१]

हम शीघ्र ही यह राष्ट्रीय सप्ताह मनानेवाले हैं। हमें विश्वास है कि यह जिस घटनाकी स्मृतिमें मनाया जायेगा उसके योग्य सिद्ध होगा। मुख्य काम होगा स्मारककी जमीनकी कीमत चुकानके लिए चन्दा करना।[२] यह स्मारक गत १३ अप्रैलको शहीदोंकी स्मृतिको स्थायित्व प्रदान करनेके लिए खड़ा किया जायेगा। चन्दा करना ही एक ऐसा काम होगा जिसे ठीक-ठीक मापा जा सकता है; यह काम पंजाबके प्रति हमारी भावनाकी ईमानदारी और गहराईकी खरी कसौटी होगा। अगर उपयुक्त कार्यकर्ता मिल जायें तो तीस करोड़की आबादीसे दस लाखकी रकम इकट्ठी करना कठिन नहीं है। अगर धनी-मानी महिलाओं और पुरुषोंको यह काम करनेको तैयार किया जा सके तो हफ्ते-भरके भीतर इतनी रकम इकट्ठी हो सकती है। निःसन्देह, ठीक तो यह होगा कि हर प्रान्तसे यथानुपात चन्दा इकट्ठा किया जाये। हम अगले हफ्ते ऐसी एक सूची देनेकी आशा करते हैं। लेकिन हर प्रान्तको अपने हिस्सेसे जितना अधिक हो सके, इकट्ठा करनेकी कोशिश करनी चाहिए। अगर हम अधिक रकम एकत्र कर लेते हैं तो उससे कुछ हर्ज नहीं होगा। दस लाख अधिकतम अपेक्षित रकम नहीं है, यह तो न्यूनतम है। अत: हर व्यक्तिसे अपेक्षाकी जाती है कि वह चन्दा देने में अधिक से अधिक उदारता दिखायेगा।

फिर आती है उपवास और प्रार्थनाकी बात। सच्चा उपवास शरीर, मन और आत्मा तीनोंको शुद्ध करता है। इससे शरीरका--इन्द्रियोंका निग्रह होता है और उस सीमातक आत्माको मुक्ति मिलती है। सच्ची प्रार्थनाका प्रभाव भी आश्चर्यजनक होता है। यह और कुछ नहीं, आत्मा द्वारा अधिकाधिक पवित्रता प्राप्त करनेकी आकुल आकांक्षा है। इस प्रकार प्राप्त पवित्रता सदुद्देश्योंके लिए प्रयुक्त हो तो प्रार्थनाका रूप ले लेती है। हम देखते हैं कि गायत्रीका ऐहिक उद्देश्योंके लिए भी उपयोग किया जाता है और रुग्ण व्यक्तिको स्वस्थ करने के लिए भी उसका जाप किया जाता है। हमने प्रार्थनाका जो अर्थ बताया है, इस उदाहरणसे वह स्पष्ट हो जाता है। यही गायत्री मन्त्रका जाप जब राष्ट्रीय कठिनाइयों और आपदाओंकी घड़ियोंमें विनयपूर्वक और एकाग्र चित्तसे तथा प्रज्ञापूर्ण ढंगसे किया जाता है तो वह इन आपदाओंको टालनेका एक बहुत प्रभावपूर्ण साधन बन जाता है। ऐसा माननेसे बड़ा भ्रम और कुछ नहीं हो सकता कि गायत्रीका जाप करना, या नमाज पढ़ना या ईसाई-प्रार्थना

  1. इस लेखका गुजराती अनुवाद २८-३-१९२० के नवजीवनमें प्रकाशित हुआ था। उसे गांधीजीनुं नवजीवन नामसे प्रकाशित उनके लेख संग्रह में भी शामिल किया गया है।
  2. जलियाँवाला बाग स्मारक-कोष।