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८६. पत्र: एस्थर फैरिंगको

इतवार, २१ मार्च, १९२०

मैं तुझसे यह कहता हूँ कि तुझे जो दिख जाये
गलीमें, राजपथपर या खुले मैदानमें,
उससे यही कह
कि वह, हम और सभी
प्यारकी एक छतकी छायामें रहते हैं--
छत जो हमारे सिरपर नीले आसमानके बराबर बड़ी है।
उससे कह कि शंका और कष्ट और भय और पीड़ा
और मनकी कसक सब मिथ्या है।
यहाँतक कि खुद मौत भी सदा रहनेवाली नहीं है,
सम्भव है कि हमें लम्बे-लम्बे मरुस्थल तय करने पड़ें;
सम्भव है कि तहखानोंके अंधकार-भरे एक रास्तेसे
दूसरा अंधकार-भरा रास्ता आ जुड़ता हो, भूलभुलयोंके धागेसे;
इस सबके बाद भी अगर हम
एक ही पथ-प्रदर्शकके इशारेपर चलें
तो घोरतम सूने अन्तर और कृष्णतम मार्ग
दिव्य दिवसके द्वारपर पहुँचा देंगे;
और हम जो एक दूसरेसे बहुत दूर-दूरके
किनारोंपर जाल फेंक रहे है
अपनी खतरनाक यात्रा समाप्त करके
आखिरकार सबके-सब पितृगृहमें आ इकट्ठा होंगे।

ट्रेन्च

रानी बिटिया,

मैं रेलगाड़ी में हूँ। दिल्ली[१] जा रहा हूँ। मैं आराम[२] नहीं ले पाया। कल मैने तुम्हें कुछ नहीं भेजा। भेज नहीं पाया। शायद अब काफी दिनोंतक कुछ न भेज

  1. गांधीजी बम्बईसे २१ मार्चको दिल्ली गये थे।
  2. एक पाँवमें दर्द होनेके कारण गांधीजीको आराम लेनेकी जरूरत थी। मार्चके आखिरी हफ़्तेमें आराम करनेके ख्यालसे वे सिंहगढ़ गये थे।