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खिलाफत

उतरनेपर जिस तरह शराबी मिट्टी बन जाता है उसी तरह वे लोग भी शस्त्रोंके टूट जानेपर मिट्टीके समान अपदार्थ होकर रह जाते हैं।

लेकिन यदि हिन्दू-मुलमान दोनों सत्याग्रह रूपी दिव्य-शस्त्रको धारण करें तो विजय निश्चित है। हिन्दू-मुसलमान, ईसाइयों द्वारा किये जानेवाले अन्यायमें हाथ बँटायें तो उन्हें पराजित करनेवाला कौन है? कोई भी मुसलमान मुसलमानोंपर होनेवाले अन्यायोंमें हाथ न बँटाये तो यह ईश्वरीय वचनकी तरह निश्चित है कि वे कदापि पराजित नहीं हो सकते। इसीसे मैंने कहा है कि अंग्रेजोंको उनके अन्यायपूर्ण कृत्योंमें मदद न करना हमारा अधिकार है, हमारा कर्तव्य है। इस कर्त्तव्यको अदा करके ही मुसलमान अपने धर्मपर होनेवाले आक्रमणसे बच सकते हैं।

ब्रिटिश लेबर पार्टीने खिलाफतके प्रश्नपर जो विचार प्रगट किए हैं, हम उनपर भी थोड़ा विचार करें। उसका सार[१] हम दूसरी जगह दे रहे हैं। उस पक्षका कहना है कि यह तो मुसलमान भी चाहते हैं कि इस्लामी साम्राज्यका[२] विभाजन कर दिया जाये। हिन्दुस्तानके मुसलमान उस बातका विरोध कैसे कर सकते हैं ? अरब ऑटोमनके साथ[३] न रहना चाहें तो क्या उन्हें जोर-जबरदस्तीसे उनके साथ रखा जा सकता है? एक सत्याग्रहीकी तरह मैं तो तत्काल इसका उत्तर दे सकता हूँ। मैं अरबोंको स्वाधीनता छीन लेनेकी बातका समर्थन नहीं कर सकता, वे स्वतन्त्र अवश्य रहें लेकिन खलीफाकी सत्ता स्वीकार करके ही। पवित्र स्थानोंपर खलीफाका अधिकार बना रहना चाहिए। यदि यह न हो सके तो मैं इसके लिए लड़ाई भले ही न करूँ, लेकिन विपरीत परिणाम निकले इसमें उनकी मदद भी न करूँ। मेरे सहयोगके बिना यह अन्याय सफल नहीं हो सकता। यदि प्रत्येक हिन्दू-मुसलमान सरकारी नौकरी छोड़ दे तो क्या हो? या तो अंग्रेजोंको ही भारत छोड़ना पड़े अथवा उन्हें हमारी इच्छाके अनुसार चलना पड़े। इसलिए मेरे विचारसे हमें धीरज रखने और लोकमतके सही ढंगसे शिक्षित होनेकी राह देखनी चाहिए। प्रश्न है, वर्तमान जागृतिका मुसलमान सदुपयोग करेंगे अथवा दुरुपयोग? मुसलमान स्वयं अपने शत्रु बनेंगे अथवा मित्र? ईश्वर उन्हें सन्मति दे और वे ऐसी परिस्थितियोंका निर्माण करें कि हिन्दू उनकी मदद कर सकें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २१-३-१९२०
  1. यहाँ नहीं दिया गया है।
  2. टर्ककि सुलतानका; जिन्हें खलीफाके रूपमें इस्लामी साम्राज्यकी सर्वोच्च सत्ता माना जाता है।
  3. अर्थात् टर्ककि ऑटोमन साम्राज्यके अन्तर्गत।