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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनानेकी वांछनीयताके बारेमें कोई मतभेद नहीं होगा। मेरी सलाह है कि लोगोंके सामने इस विषयको प्रस्तुत करते समय उनके मनमें शहीदोंकी स्मृति जगायें, किये गये अत्याचारोंकी स्मृति नहीं।

मुझे विश्वास है कि जो लोग सत्याग्रहके तरीके को पसन्द नहीं करते वे भी उस कारणसे चन्दा इकट्ठा करनेके काममें योग देनेसे हाथ न खींचेंगे। यह सही मानेमें एक राष्ट्रीय स्मारक होना चाहिए।

लेकिन इस सप्ताहमें उपवास और प्रार्थना भी शामिल हैं, जिनपर मैं स्वयं स्मारकसे भी अधिक बल देता हूँ, क्योंकि यदि व्यापक रूपमें उपवास और प्रार्थना की जायेगी तो मैं जानता हूँ कि धन तथा जिस वस्तुकी भी हमें जरूरत है, वह सब बिना किसी और प्रयत्नके ऐसे आने लगेगी जैसे आसमानसे बरस रही हो। इस दिशामें एक अद्वितीय विशेषज्ञकी हैसियतसे मैं आपको अपना अनुभव बताना चाहता हूँ। मैं अपने किसी भी ऐसे समकालीन व्यक्तिको नहीं जानता जिसने उपवास और प्रार्थनाको, मेरी तरह विशुद्ध विज्ञानका रूप दे दिया हो और जिसने उनसे मेरे जितना प्रचुर लाभ उठाया हो। क्या ही अच्छा होता, यदि मैं इस सम्बन्धमें अपने अनुभवोंको पूरे राष्ट्रके मनमें उतार सकता और उसे पूरी जागरूकता, ईमानदारी और उत्कटताके साथ प्रार्थनाका सहारा लेनेके लिए प्रेरित कर पाता। अगर हम ऐसा करें तो यह बात अविश्वसनीय तो लगेगी, लेकिन है सच कि हम राष्ट्रसे सम्बन्धित लाखों काम बिना किसी विस्तृत संगठन-समायोजन और प्रतिबन्ध-नियन्त्रणके कर ले जायेंगे। परन्तु मैं जानता हूँ कि उपवास और प्रार्थनाको, जितना प्रभावकारी मैंने पाया है, उतना प्रभावकारी बनानेके लिए तो उपवास और प्रार्थना कोई रीति-निर्वाहके रूपमें नहीं, बल्कि निश्चित आध्यात्मिक अनुष्ठानके रूपमें करने चाहिए यानी उपवास दैहिक तपके द्वारा अथवा [यदि 'बाइबिल के प्रतीकका उपयोग करके कहा जाये तो] देहके बलिदान द्वारा जहाँ उतने ही अंशमें आत्माको विमुक्ति है वहाँ प्रार्थना सर्वथा शुद्ध और निष्कलुष होने के लिए हमारे अन्तःकरणकी निश्चित चेतन अभीप्सा है। और इस प्रकार जो शुद्धि प्राप्त होती है वह पुन: किसी लक्ष्यविशेषकी सिद्धिके लिए उत्सर्ग कर दी जाती है, जो स्वयं भी उतना ही विशुद्ध होता है। अतएव में आशा करता हूँ कि यदि आप उपवास और प्रार्थनाकी प्राचीन परम्परामें विश्वास रखते हों तो आप ६ अप्रैल और १३ अप्रैल, दोनों तिथियोंका उपयोग इसी उद्देश्य के लिए करेंगे और पड़ोसियोंको भी ऐसा ही करनेके लिए प्रोत्साहित करेंगे।

अब रह जाती है तीनों सभाओंकी[१] बात; सो मुझे विश्वास है कि उनका आयोजन आप अवश्य करेंगे और उन्हें पूर्ण रूपसे सफल बनायेंगे।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
लेटर्स ऑफ वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री
  1. ६,९ और १३ अप्रैलको।