पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/१४४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिनका विधान उनके लिए 'कुरान' में किया गया है। और वे उपाय ये हैं कि जब उनके धर्मपर आवात किया जाये तो जिस देशमें ऐसा आघात किया जाता है, या तो उसे छोड़कर वे चले जायें और या फिर आघात करनेवालेके विरुद्ध लड़ाई छेड़ दें। और इस प्रकार इस प्रस्तावमें, निस्सन्देह, बहुत ही शालीन और स्पष्ट ढंगसे उन तमाम अवस्थाओंका पूर्व-संकेत दे दिया गया है, जिनसे होकर यह आन्दोलन गुजरेगा, और अन्तिम अवस्था होगी खूनी क्रान्ति। भगवान् न करे कि इस देशको किसी ऐसी क्रान्ति और उसकी समस्त भयंकरताओंसे गुजरना पड़े, लेकिन इस खिलाफतके सवालपर लोगोंकी भावनाएँ इतनी तीव्र और इतनी गहरी है कि अगर शान्तिपूर्ण उपाय असफल रह जाते है और इस समस्याका कोई अन्यायपूर्ण निबटारा किया जाता है तो यह देश एक ऐसे क्रान्तिकारी आन्दोलनकी चपेट में पड़ सकता है, जैसा आन्दोलन हमने पहले कभी नहीं देखा है; और अगर ऐसी कोई स्थिति आती है तो उसका दायित्व अंग्रेजोंपर होगा तथा हिन्दुओं और भीरु मुसलमानोंपर। अगर अंग्रेज लोग इस सम्बन्धमें सिर्फ हमारी गहरी भावनाको और एक न्यायपूर्ण निर्णयकी जरूरत देख सकें तो सब-कुछ ठीक ही होगा। अगर हिन्दू लोग पड़ोसीके नाते अपने कर्तव्यको समझें और मुसलमानोंके साथ सक्रिय सहयोग करें तो वे संयुक्त और सर्वथा शान्तिपूर्ण प्रयासके बलपर अधिकारियोंको कोई न्यायसंगत हल निकालने को मजबूर कर सकते हैं। और जो मुसलमान भीरु है वे अगर इस संकटकी घड़ी में अपनी भीरुता छोड़कर हिंसाके हिमायतियोंको यह दिखा दें कि इस्लामका कोई अनुयायी युद्धसे भागनेवाला नहीं है तो इस तरह वे भी रक्तपातको रोकेंगे। और अगर तब भी हमारी किस्मतमें क्रान्ति ही बदी है तो वह उस समय आयेगी जब ईमानदार, सम्माननीय और नेक-रूह मुसलमान अपने-आपको बिलकुल निराशाकी स्थिति में पायेंगे और ऐसा महसूस करेंगे कि अंग्रेज, हिन्दू और स्वयं उनके सहधर्मी लोग उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि सारा भारत एक होकर सर्वशक्तिमान् से प्रार्थना करेगा और न्यायके लिए ऐसी आवाज बुलन्द करेगा जिसकी उपेक्षा कोई नहीं कर सकेगा। अन्तमें, मैं यह आशा भी करता हूँ कि सरकार विवेकसे काम लेगी और क्रोधमें आकर कोई ऐसी दमनात्मक कार्रवाई नहीं करेगी जिससे क्रान्तिको फूट पड़नेका अवसर मिले। हम आशा करते हैं कि सरकार यह समझेगी कि भारत अब कोई अबोध शिशु नहीं है और समान परिस्थितियों में भारतीयोंके मन में भी वैसी ही भावनाएँ उठती हैं जैसी अंग्रेजोंके मनमें उठती हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २४-३-१९२०