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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्य लोगोंके लिए यह देश मातृभूमिके समान है या जिन्होंने इसे अपने देशके रूपमें अंगीकार कर लिया है, उन सबके बीच एक संयुक्त अभिसन्धि है।

और इस संघर्षके दौरान इस तरह संयुक्त रूपसे जो कुछ भी किया जायेगा, उसके लिए तो यह प्रस्ताव अहिंसाकी नीतिके पालनका अनिवार्य विधान करता है; लेकिन 'कुरान' के अनुसार मुसलमानोंके कुछ विशेष दायित्व हैं, जिनके निर्वाहमें हिन्दू शामिल हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं। इसलिए मुसलमान लोग, अहिंसक असहयोगके असफल होनेपर, न्याय प्राप्त करनेके लिए ऐसे सभी उपायोंका आश्रय लेनेका अपना अधिकार सुरक्षित रखते हैं जिनकी व्यवस्था इस्लामके धर्मग्रंथों में की गई हो। मैं इस प्रस्तावसे अपनी हार्दिक सहमति व्यक्त करता हूँ। मेरे विचारसे इसका स्वर पूरी तरहसे विनय और मर्यादापूर्ण है। मैं देखता हूँ कि इस उद्देश्यको पूरा करने के लिए शिया और सुन्नी, हिन्दू और पारसी सभी बड़े ही सौम्य और शिष्ट ढंगसे मिलजुलकर अपने विरोधका प्रदर्शन कर रहे हैं। हिन्दुओंका कपड़ेका यह भारी बाजार पूरी तरह बन्द रहा, उनके कारोबारकी पेढ़ियां भी बन्द रहीं, इससे स्पष्ट है कि वे मुसलमानोंकी माँगसे पूरी तरह सहमत हैं। लन्दनमें जो नापाक आन्दोलन[१] प्रारम्भ किया गया है, उससे भारतीयोंकी भावना इतनी उबल पड़ी है कि जबतक न्याय नहीं कर दिया जाता तबतक वह शान्त नहीं हो सकती। हमें यह जानकर बड़ा दुःख हुआ और आश्चर्य भी कि अपने भारत-सम्बन्धी समस्त ज्ञान और अनुभवके बावजूद लॉर्ड कर्जनने भी इस मूर्खतापूर्ण आन्दोलन में हाथ बँटाया है।

आशाकी किरण

फिर भी ये जो विपत्तिके बादल उमड़ आये हैं, उनके बीच आशाकी एक किरण दिखाई दे रही है। श्री मॉन्टेग्यु हमारे पक्षका बड़ी दृढ़ताके साथ समर्थन करते रहे हैं। श्री लॉयड जॉर्जने भी आखिरकार अपनी स्मरणीय घोषणाको फिर दुहराया है,[२] हालाँकि तनिक आगा-पीछा करते हुए। मेरा खयाल है, भारत सरकार हमारी माँग पूरी करानेके लिए बड़ी दृढ़तासे कार्रवाई कर रही है। आंग्ल-भारतीय अखबारोंका रुख भी अमैत्रीपूर्ण नहीं है। बल्कि 'टाइम्स आफ इंडिया' और बंगाल चैम्बर ऑफ कामर्सने तो हमारे पक्षका जोरदार समर्थन भी किया है। इस प्रस्तावका सभी अंग्रेजोंको आवाहन है कि वे सत्यकी ध्वजाके नीचे एकत्र होकर, अपने जातीय सम्मान और ब्रिटिश प्रधान मंत्रीके वचनकी रक्षा करें। ब्रिटेनसे भारतके जो सम्बन्ध है उनके प्रति मेरी वफादारी किसीसे कम नहीं है, लेकिन अपना सम्मान बेचकर, अपने देशभाइयोंके एक वर्गकी गहरी धार्मिक भावनाओंका बलिदान करके वफादारीका तमगा लगाये रहना

  1. तात्पर्य शायद इंग्लैंडमें तुकोंके खिलाफ किये जा रहे प्रचारसे है। इस प्रचारमें तुर्कोपर मानवताके विरुद्ध अपराध करनेका आरोप लगाया गया था।
  2. २६ फरवरी, १९२० को लॉयड जॉर्जने कॉमन्स सभामें घोषणा की कि "१९१८ के जनवरी महीने में जो वचन दिया गया था वह सभी दर्लोसे पूरी तरह सलाह-मशविरा करनेके बाद दिया गया था। यह वचन स्पष्ट रूपसे बिना किसी शर्त-बन्धनके और सोच-समझकर दिया गया था...भारतमें इसका परिणाम यह हुआ कि उसी शगले फौजी भरती बड़े जोर-शोरसे होने लगी।"