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भाषण : खिलाफतपर

तरहके बाहरी दबावका उपयोग नहीं किया गया। मैंने समितिको सलाह दी थी कि मिल मजदूरोंसे हड़तालमें शामिल होने को न कहा जाये, और यह देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई कि समितिने उस सलाहका पूरा पालन किया।

आये दिन देशकी विभिन्न औद्योगिक पेढ़ियोंमें मजदूरों और मालिकोंके बीच तनाव बना ही रहता है।[१] इस चीजको देखते हुए हम मजदूरोंको, जबतक उनके मालिक स्वेच्छासे उन्हें अनुमति न दे दें तबतक अपने कामसे अनुपस्थित होनेको प्रेरित न करें तो अच्छा है।

हमारे प्रस्तावके चार भाग हैं। पहले भाग में एक आपत्ति की गई है और एक निवेदन। आपत्ति की गई है खिलाफतके प्रश्नपर इंग्लैंडमें प्रारम्भ किये गये हिंसापूर्ण और अनुत्तरदायित्वपूर्ण आन्दोलनके विरुद्ध; और निवेदन मंत्रियों तथा अन्य राजनयिकोंसे किया गया है। निवेदन यह कि वे इस आन्दोलनमें भाग न लें और इस सवालका कोई ऐसा सम्मानजनक निबटारा करायें जो भारतके मुसलमानोंकी उचित धार्मिक भावनाओंके अनुरूप हो, और इस तरह वे हमें आश्वस्त कर दें कि ब्रिटेनके लोग हमारे प्रति सौहार्द और मित्र-भाव रखते हैं। प्रस्तावके दूसरे हिस्से में सम्बन्धित लोगोंको आगाह किया गया है कि अगर सवालका कोई प्रतिकूल निबटारा किया गया तो सम्भव है, उसके परिणामस्वरूप सरकार के साथ सहयोग करना बिलकुल बन्द कर दिया जाये।[२] ऐसे किसी निबटारेका मतलब होगा, भारतीयोंकी वफादारीपर अनुचित दबाव डालना, और अगर दुर्भाग्यवश असहयोग बन्द करने जैसी कोई कार्रवाई करना जरूरी हुआ तो फिर उत्तेजना फैलनेकी भी सम्भावना है। प्रस्तावके तीसरे हिस्से में लोगोंको वचन अथवा कर्म, किसी भी तरहसे हिंसा करनेके खिलाफ स्पष्ट शब्दोंमें चेतावनी दी गई है, और कहा गया है कि इस महती सभाके विचारसे किसी भी प्रकारकी हिंसाका परिणाम इस पवित्र उद्देश्यके लिए घातक होगा और इससे इसकी अपूरणीय क्षति होगी। यहाँतक तो यह प्रस्ताव हिन्दुओं, मुसलमानों तथा जिन

  1. उदाहरण के लिए जमशेदपुरके टाटा इस्पात कारखानेके मिल मजदूरोंका झगड़ा ले सकते हैं जिसमें हड़तालियोंपर पुलिस और सैनिकोंने १५ मार्चको गोलियाँ भी चलाई थीं।
  2. गांधीजीका असहयोगका कार्यक्रम जनताके सामने पहले-पहल २६ जनवरी, १९२० को मेरठ में आयोजित खिलाफत कान्फ्रेंस में रखा गया। २९ फरवरी, १९२० को कलकत्ते में आयोजित दूसरी कान्फ्रेंस में मौलाना आजादने अपने अध्यक्षीय भाषण में इस कार्यक्रमके "मुसलमानों द्वारा स्वीकार करनेकी" सिफारिश की।