पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/१३८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रानी बिटिया,

तुम अपना वादा भूल गईं। इतने लम्बे अरसेतक मुझे अपनी खबरसे वंचित रखना ठीक नहीं है। आजके लिए ऊपरको कविता चुनी है।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड

८१. भाषण: खिलाफतपर[१]

१९ मार्च, १९२०

यह मेरे लिए अतीव प्रसन्नताकी बात है कि इस महती सभाका एकमात्र प्रस्ताव[२] प्रस्तुत करनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है।

आजके शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकी भव्य सफलताके लिए मैं संयोजकों और स्वयंसेवकोंको बधाई देता हूँ। कारोबार बन्द रखने के क्या-क्या परिणाम हो सकते हैं, इस सम्बन्धमें हमें बहुत सारी चेतावनियाँ दी गई थीं। लेकिन खिलाफत-समिति इस बातके लिए बधाईकी पात्र है कि उसके प्रयाससे कमसे-कम बम्बईके लोगोंका व्यवहार इस सम्बन्धमें बड़ा अच्छा रहा। हड़ताल बिलकुल स्वयंस्फूर्त और ऐच्छिक थी। किसी कर्मसे ही हिंसाका सहारा लिया जायेगा और इसका यह दृढ़ मत है कि इस आन्दोलनके सिलसिलेमें को गईं किसी प्रकारकी हिंसा इसके लिए बहुत घातक सिद्ध होगी और इससे इसकी अपूरणीय क्षति होगी। अगर यह संयुक्त कार्रवाई असफल रह जाती है तो मुसलमान लोग ऐसे कदम उठानेका अपना अधिकार सुरक्षित रखते हैं जो परिस्थितिको देखते हुए आवश्यक लग सकते हैं।

इस सभा के अध्यक्षको इस प्रस्तावकी एक प्रति परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदयको सेवामें इस निवेदनके साथ प्रेषित करनेका अधिकार दिया जाये कि वे महामहिम सम्राटको भी यह प्रस्ताव भेज दें ।” अमृतबाजार पत्रिका, २४-३-१९२०।

  1. यह भाषण बम्बईमें खिलाफत-दिवसपर आयोजित एक सार्वजनिक सभामें दिया गया था, जिसमें कोई तीस हजार हिन्दू, मुसलमान तथा अन्य धर्मावलम्बी नागरिक मौजूद थे। सभाकी अध्यक्षता मियाँ मुहम्मद हाजी जान मुहम्मद छोटानीने की थी।
  2. प्रस्तावका पाठ निम्नलिखित था: "बम्बईके हिन्दू, मुसलमान तथा अन्य नागरिकोंकी यह सभा, ब्रिटेनमें मुसलमानोंके और सारे भारतके मर्मको आघात पहुँचानेके उद्देश्यसे चल रहे हिंसात्मक और अनुत्तरदायित्वपूर्ण आन्दोलनके प्रति तीव्र विरोध प्रकट करती है, और विश्वास करती है कि महामहिमके मन्त्रिगण तथा अन्य जो राजनयिक भारतको एक स्वतंत्र साझेदारके रूपमें साम्राज्यमें शामिल रखना चाहते हों वे सब न केवल इस आन्दोलनसे अपने-आपको अलग रखेंगे बल्कि खिलाफतके सवालका कोई ऐसा निबटारा करायेंगे जो महामहिमके करोड़ों मुसलमान प्रजाजनोंकी उचित और धार्मिक भावनाओंके अनुरूप हो; और इस तरह वे भारतके लोगोंको इस बातके लिए आश्वस्त कर देंगे कि यूनाइटेड किंगडमके लोग उनके प्रति सख्य-भाव और सौहार्द रखते हैं। यह सभा आगे अपनी गहरी प्रतीति व्यक्त करती है कि अगर इस सवालका किसी और ढंगसे निवटारा किया गया तो उसका परिणाम अन्तत: यह होगा कि लोग सरकारसे सहयोग करना बिलकुल बन्द कर देंगे और इसलिए यह सभा साम्राज्यके सभी राजनयिकोंसे अनुरोध करती है कि वे ऐसा-कुछ करें जिससे भारतीयोंकी वफादारीपर इतना कठिन दवाव न पड़े। साथ ही यह सभा इस तथ्यको भी ध्यानमें लाना चाहती है कि भारतीयोंकी उचित भावनाओंको प्रभावकारी बनानेके लिए संयुक्त रूपसे जो भी कदम उठाना आवश्यक होगा उसमें न वचनसे और न