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७७. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बृहस्पतिवार [१८ मार्च, १९२०][१]

प्रभु, मेरा जीना या मेरा मरना
मेरे हाथमें नहीं है।
तुम्हें प्यार करना और तुम्हारी चाकरी बजाना
मेरा प्राप्य है,
और तुम्हारी करुणाके हाथों मुझे मेरा यह प्राप्य
मिलना ही चाहिए!
अगर जीवन दीर्घ हो
तो मुझे खुशी होगी कि मैं दीर्घ कालतक
तुम्हारी आज्ञाका पालन करूँगा।
अगर जीवनके दिन इनगिने मिलें
तो भी उदासी क्यों अपनाऊँ!
क्यों अनन्त कालतक उड़ते रहनेकी इच्छा रखूँ!
अँधेरे जिन कक्षोंसे ईसा खुद गुजरे है,
मुझे वे उनसे अधिक अँधेरे कक्षोंसे तो नहीं ले जा रहे हैं!
जो कोई भगवानके राज्य में पहुँचता है
उसे इस द्वारसे होकर गुजरना होता है।
प्रभु, तुम तभी आओ जब तुम्हारी करुणा
मुझे तुम्हारे दर्शनका पात्र बना चुके!
क्योंकि जब तुम्हारे लौकिक काम भी मधुर है,
तो तुम्हारी [दिव्य] प्रभुता कितनी मधुर होगी!
[दिव्य] उस जीवनका मेरा ज्ञान अल्प है
श्रद्धाके मेरे चक्षु दुर्बल है;
किन्तु यह पर्याप्त है कि ईसा सर्वज्ञ हैं;
मैं उनके आँचलका छोर पकड़े रहूँगा!

रिचर्ड बैक्स्टर

  1. गांधीजीने १७ मार्च, १९२० और २१ मार्च, १९२० को पत्र लिखे थे। साधन-सूत्रमें इन दोनों तारीखोंके बीच दो तिथिहीन पत्र हैं। २१ मार्चके पत्रमें गांधीजीने लिखा है कि मैंने कल तुम्हें नहीं लिखा। अर्थात् २० को पत्र नहीं लिखा गया। इसलिए ये तिथिहीन दो पत्र क्रमश: १८ और १९ मार्चके होंगे।