पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/१३२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

७६. पत्र: मगनलाल गांधीको

[१७ मार्च, १९२०][१]

चरखेकी अवधिको बढ़ाना चाहो[२] तो बढ़ा सकते हो; वैसे तुमने जो उत्तर लिखा है वह ठीक है। यदि उस व्यक्तिका चरखा अच्छा सिद्ध हुआ तो उसे कुछ पुरस्कार देंगे। मेरी मान्यता है कि हम आश्रममें खादीका उतना उपयोग नहीं करते जितना कि हमें करना चाहिए। सरलादेवीने भी इस बारेमें टीका की है। स्त्रियोंके शरीरपर खादी बिलकुल ही न हो कमसे-कम मुझे तो इसका कोई सबब दिखाई नहीं देता। खादीको रँगवाना चाहो तो रँगवा सकते हो, लेकिन बालिकाएँ खादीकी ढीली चोली पहनें तो इसमें कोई बुराई नहीं जान पड़ती। स्त्रियोंको तो खादीकी चोली पहनने में कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए। सन्तोक, राधा और रुखीको समझा सको तो समझाना।

मुझे २० को दिल्ली जाना पड़ेगा। २२ तारीखको दिल्लीमें होऊँगा। २३ को दिल्लीसे बम्बई आऊँगा। बादमें सम्भवत: एक सप्ताहके लिए सिंहगढ़ जाऊँगा। इस बीच डाक अभी वहीं आती रहे; महत्त्वपूर्ण पत्रोंका तुम अथवा नरहरि[३] उत्तर लिख देना। ऐसी व्यवस्था करना जिससे मुझे सारी डाक २४ तारीखको बम्बईमें मिल जाये। तबतक डाकको सँभालकर रखना ताकि मुझे कुछ और निर्देश देने हों तो दे सकूँ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७८३) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

  1. २१ से २४ मार्चतक गांधीजी दिल्ली में थे और २६ से ३० मार्च, १९२० तक सिंहगढ़में। १७ और १९ मार्चको वे बम्बईमें थे; स्पष्टतः यह पत्र वहींसे लिखा गया था।
  2. संकेत स्पष्टतः ५-१०-१९१९ के नवजीवनमें देशी चरखेके अच्छे नमूनेके लिए, पुरस्कारको जो घोषणा की गई थी, उस ओर है। देखिए खण्ड १६, पृष्ठ २२३-२४। चरखा-पुरस्कार प्रतियोगिता ३१ मार्च, १९२० को अहमदाबादमें हुई थी।
  3. नरहरि द्वारकादास परीख, १९१७ से सावरमती आश्रममें गांधीजीके रचनात्मक कार्यकर्ताओंके दलके एक सदस्य।