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७५. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बम्बई
१७ मार्च, १९२०

मुझे दृष्टि दो, हे मेरे प्रभु, हे मेरे स्वामी
कि सभी चीज़ोंमें मैं तुम्हारे दर्शन कर सकूँ।
और जो कुछ करूँ सो तुम्हारे निमित्तसे करूँ;
हर वस्तु तुम्हारा अंश प्राप्त करे।
इतना तुच्छ तो कुछ भी नहीं हो सकता
जो तेरे निमित्तकी आभासे
चमक न उठे, धुल न जाये।
जो समर्पित होकर सेवा करता है
वह रोजमर्राको दिव्य बना देता है;
जो तुम्हारे नियमानुसार एक कमरा भी झाड़ता है
वह कमरेको और झाड़नेको
एक सौन्दर्य सौंपता है।
समर्पण ही वह स्पर्श-मणि है
जिसे छूकर सब-कुछ कंचन हो जाता है;
भगवान जिसे छू दें और स्वीकार कर लें
वह कंचनसे कम कैसे हो सकता है।

जॉर्ज हर्बट

बिटिया,

कामना करता हूँ कि इसकी किसी एक पंक्ति, शब्द या विचारसे तुम्हारा दुःख हल्का हो सके।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड