पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/१३०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करेगा। पूरी जोरदार कार्रवाई करने में भी हिंसाका खतरा है, किन्तु हमें मात्र इसी भयके कारण उचित कार्य करनेसे डरना नहीं चाहिए कि कहीं उसका गलत अर्थ न लगा लिया जाये और उसके फल-स्वरूप अनर्थ न हो जाये। मानवीय दृष्टिसे कहें तो जो सम्भव है वह इतना ही कि गलतियों और गलतफहमीसे बचते हुए, ईश्वरमें विश्वास रखकर हम आगे बढ़ते जायें। मैं जानता हूँ कि यदि खिलाफतके प्रश्नके उचित हलसे कम कोई चीज इस प्रश्नपर हिंसाको टाल सकती है तो वह यही चीज, यही रास्ता है। इसलिए मैं विश्वास करता हूँ कि सब विचारोंके भारतीय इस आन्दोलनमें सम्मिलित होंगे। अगर हिन्दू लोग एकमत होकर कोई दृढ़ रुख अपनायेंगे तो उससे मुसलमानोंके हृदयमें साहस और आशाका संचार होगा। किसी भी तरहकी ढिलाई या उपेक्षाका परिणाम होगा निराशा और निरुत्साह।

बहुत-कुछ यही बात सत्याग्रहके विरुद्ध उठाई जानेवाली आपत्तिके बारे में भी कही जा सकती है। मैं अब भी यही मानता हूँ कि फिलहाल विशुद्ध और उत्कृष्ट ढंगका सत्याग्रह करने में तो अकेला में ही समर्थ हूँ। लेकिन अगर इस विश्वासके कारण में सत्याग्रहका प्रयोग ही न करूँ तब तो उसका कभी प्रसार ही नहीं होगा। किन्तु यहाँ इसके अतिरिक्त एक अन्य तर्क-दोष भी है। अगर सत्याग्रह सविनय प्रतिरोधके रूप में किया जाये तो उसमें अशोभन बातें होने की सम्भावना तो है ही। किन्तु हड़ताल कोई नया शस्त्र नहीं है और वह सत्याग्रहके अन्तर्गत आ भी सकता है, नहीं भी आ सकता। और न असहयोगके लिए ही सत्याग्रह होना कोई आवश्यक है। जब माननीय पं० मदनमोहन मालवीयने इम्पीरियल कौंसिलसे त्यागपत्र दिया था[१] या जब सर रवीन्द्रनाथ ठाकुरने अपनी उपाधिसे मुक्त कर दिये जानेका अनुरोध किया था[२] तो उन्होंने ये कदम सत्याग्रहीके रूप में नहीं उठाये थे। बेशक व्यापक असहयोग करने में खतरा है, किन्तु यह तो केवल एक सामान्य सत्य ही बताना है। याद रखनेकी एक बात यह है कि खिलाफत मुसलमानोंके लिए जीवन और मरणका प्रश्न है। उनके लिए इसका उचित समाधान प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। इधर हिन्दुओंका पुनीत कर्तव्य है कि जबतक उनके मुसलमान भाई अहिंसाके मार्गपर दृढ़ रहकर काम कर रहे हों तबतक वे उनके लिए अपना सब-कुछ दे दें। और में तो नहीं मानता कि उन्हें उस मार्गपर दृढ़ रखनेके लिए इससे कोई अच्छा उपाय भी है कि समस्त हिन्दू, ईसाई, पारसी और यहूदी, जिन्होंने भारतको अपना देश बना लिया है, पूरे मनसे उनका समर्थन करें और उन्हें हिंसाका आश्रय लिये बिना अपनी शिकायत दूर करवानके प्रभावकारी उपाय सुझायें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७-३-१९२०
  1. ६ अप्रैल, १९१९ को।
  2. उन्होंने अपनी 'नाइटहुड' की उपाधि १ जून, १९१९ को त्याग दी।