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७४. खिलाफत

इलाहाबादके 'लीडर' और 'यंग इंडिया' में स्पष्ट मतभेद हो गया है। मैं 'लीडर' का इतना आदर करता हूँ कि वह जो भी विचार प्रकट करता है उसे स्वीकार करने के लिए मैं बहुत प्रयत्न करता हूँ। किन्तु पिछले कुछ समयसे कितनी ही कोशिशके बावजूद मैं उसके विचारोंको स्वीकार करने में असफल ही रहा हूँ। इसका सबसे ताजा उदाहरण है बहिष्कार और असह्योगके मामले में वह उलझन, जिसमें 'लीडर' पड़ गया है मैंने सोचा था कि मेरा अर्थ स्पष्ट है और उसमें कोई असंगति नहीं है। बहिष्कार एक दण्ड है और उसकी कल्पना बदलेकी भावनासे की जाती है। अंग्रेजी मालके बहिष्कारके पीछे विचार ऐसा है कि अंग्रेजी माल दूसरे मालसे, जैसे कि जापानी मालसे, चाहे अच्छा ही क्यों न हो, लेकिन मुझे उसे न खरीदना चाहिए क्योंकि ब्रिटिश मन्त्रियोंने हमारे साथ जो अन्याय किया है या कुछ अंग्रेजोंने खिलाफतके बारेमें जो अत्यन्त दायित्वहीन और अशिष्ट भाषाका प्रयोग किया है उसका बदला में अंग्रेज जनतासे लेना चाहता हूँ। मैं यह मानता हूँ कि इन स्थितियोंमें बहिष्कार हिंसाका ही एक रूप है।

असहयोगका आधार भिन्न है। यदि सरकार अन्याय करती है तो उससे सहयोग करनेका मतलब यह है कि मैं भी उसके इस अन्यायमें सहभागी हूँ और इस प्रकार उसके लिए अन्याय करना सम्भव बनाता हूँ। इस हालतमें उस सरकारको सहयोग न देना मेरा कर्तव्य है, किन्तु ऐसा दण्डके रूप में या बदला लेनेकी भावनासे नहीं, बल्कि इसलिए करना है कि उस अन्यायका दायित्व मुझपर न आ सके। दरअसल अगर मैं उस सरकारकी गाड़ी बिलकुल रोक भी दूं तो यह उचित ही होगा। इसलिए इस सम्बन्धमें मेरा विचार बिल्कुल स्पष्ट है कि असहयोग बहिष्कारसे उतना ही भिन्न है जितना हाथी गधेसे।

मैं जो हिंसाको अस्वीकार करता हूँ और हड़तालको स्वीकार करता हूँ, उसमें 'लीडर' को असंगति दिखाई देती है। किन्तु मुझे उसमें कोई असंगति दिखाई नहीं देती, क्योंकि मुझे लगता है कि यह आवश्यक नहीं कि हड़तालसे हिंसा हो ही। कोई भी व्यक्ति उचित कार्य करनेसे बराबर इसीलिए कतराता नहीं रह सकता कि उसमें खतरेकी भी आशंका होती है। कदाचित् 'लीडर' की कठिनाईका कारण उसका यह विश्वास है कि जोरदार और निश्चित कार्रवाई करना जरूरी नहीं है और मित्रराष्ट्रों द्वारा विपरीत निर्णय[१] किये जानेपर भी भारतके मुसलमानोंके लिए शान्त रहना सम्भव है। मेरी रायमें यदि कोई ऐसी अहिंसात्मक कार्य-पद्धति नहीं निकाली गई जिससे इस प्रश्नका उचित समाधान हो जाये तो यह आन्दोलन[२] ही हिंसाका समर्थन

  1. टर्कीक सुलतानकी राजनीतिक और आध्यात्मिक सताके सम्बन्ध।
  2. खिलाफत आन्दोलन।