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७३. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बम्बई
१६ मार्च, १९२०

प्रार्थनासे कितना-क्या हो जाता है
इसकी संसार कल्पना नहीं कर सकता।
इसलिए रात और दिन मेरे लिए
किसी झरनेकी तरह मुक्त वाणी में प्रार्थना करो।
क्योंकि मनुष्य यदि भगवानको जानकर भी
अपने लिए और अपने को मित्र माननेवालोंके लिए
हाथ उठाकर प्रभुसे दुआ न माँगे
तो वह उन भेड़ और बकरियोंसे
किस तरह बेहतर है
जो बिना सोचे अपनी देहको ही पुष्ट करते रहते हैं?
यह [प्रार्थना] ही है वह स्वर्णमेखला
जिससे यह मण्डलाकार धरित्री प्रभुके चरणों में बँधी हुई है।

टेनीसन

रानी बिटिया,

आज तुम्हारे दुःखमें ऊपरकी कविता भेजकर हाथ बँटा रहा हूँ। इससे दुःख शायद कुछ हल्का हो।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड