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७०. पत्र: एस्थर फैरिंगको[१]

आश्रम
१४ मार्च, १९२०

रानी बिटिया,

मैं अवश्य तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा; मेरे लेखे इससे बढ़कर कुछ किया भी नहीं जा सकता। जिस संगीनीमें से तुम इस समय गुजर रही हो उसमें तुम्हारे मित्रगण तुम्हारी कोई बड़ी मदद नहीं कर सकते। ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा।

कभी न कभी हर व्यक्ति और राष्ट्रके सामने
उपस्थित होता है वह क्षण
जब उसे सत और असत्के संघर्ष में
चुनना पड़ता है अपना पक्ष
शिव और अशिवके बीच!
महान् कोई उद्देश्य, भगवानका नया कोई मसीहा
हर एकको अवसर देता है खिलने या झरनेका,
बाँट देता है अपने दाहिने और बायें
[विनयशील] मेषों
और [उदंड] अजाओंके दलोंको!
और विकल्प-वरण यह
प्रकाश और अन्धकारका
चलता ही रहता है, चलता ही रहता है।

आशा करता हूँ कि अगर बना तो रोज ऐसा एक-न-एक उद्धरण चुनकर और अपनी प्रार्थनासे आविष्ट करके तुम्हें भेजता रहूँगा। आजका अंश लॉवेलकी रचनामें से है।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

  1. एस्थर कैरिंगके डॉ० ई० के० मेननसे विवाह-सूत्र में बंधनेपर बड़ी टीका-टिप्पणी की गई थी। उस समप गांधीजीने सान्त्वना और साहस बँधानेवाले ग्यारह पत्र लिखे थे। यह पहला पत्र है।