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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भीड़ने बहुत ही शरारत-भरा व्यवहार किया था और हमें इस बातको साफ तौरपर स्वीकार कर लेना चाहिए।

(२)

आज आपको मैं बहुत ही थोड़ी सामग्री भेज रहा हूँ, परन्तु मेरा खयाल है कि पहले ही इतना काफी भेज चुका हूँ कि कम्पोजीटर लोग खाली न बैठेंगे। मुझे यह काम कल जरूर ही समाप्त कर डालना है, चाहे रात-भर क्यों न जागना पड़े।

(३)

ईश्वरको धन्यवाद है! सामग्रीका अन्तिम अंश भेज रहा हूँ। कृपया हर चीजको बहुत ध्यानसे पढ़िएगा। डा० परशरामसे यह जानकर मुझे दुःख हुआ कि आप अस्वस्थ थे।

[अंग्रेजीसे]
द स्टोरी ऑफ माई लाइफ

६९. प्रेस अधिनियम और श्री हॉर्निमैन

प्रेस अधिनियम रद करनेके सम्बन्धमें बम्बई में जो सभा[१] आयोजित की गई थी, वह महत्त्वपूर्ण थी। सर नारायण चन्दावरकरने[२] यह बात सिद्ध कर दी है कि प्रेस अधिनियमके रद होनेसे लोगों और सरकार दोनोंको ही समान लाभ है। शुतुरमुर्गके विषयमें यह कहा जाता है कि जब वह संकटको सामने पाता है तब अपना सिर रेतमें गड़ा लेता है और समझ लेता है कि अब कोई भय नहीं है। वह अन्तत: संकटसे घिर जाता है। प्रेस अधिनियम बनाकर सरकारने अपनेको शुतुरमुर्गकी परिस्थितिमें डाल दिया है। सरकारके प्रति [यदि] लोकभावना अच्छी नहीं है, और समाचारपत्र उसे अभिव्यक्त करनेका साधन है; किन्तु इसलिए उनको दबाने का प्रयत्न करनेसे लोकभावना दब नहीं सकती। इसके अलावा प्रेस अधिनियमको विधि-पुस्तिकामें सन्निविष्ट करके सरकारको अवस्था उस वायुविज्ञानवेत्ताके समान हो गई है जो वायुमापक यन्त्रको तोड़ने के बाद हवाको स्थितिको जानने का प्रयत्न कर रहा हो। प्रेस अधिनियमका विधि-पुस्तिकामें समावेश करके सरकारने लोकभावना किस दिशामें बहती है और उसका स्वरूप क्या है--ये सब बातें जाननेके यन्त्रको तोड़ डाला है और फलस्वरूप वह जनताको प्रवृत्तिको पहचानने में असमर्थ हो गई है। इसलिए प्रेस अधिनियमको रद करना अथवा करवाना सरकार और जनता दोनोंका ही कर्तव्य है।

  1. ५ मार्च, १९२०।
  2. नारायण गणेश चन्दावरकर (१८५५-१९२३); बम्बईके नरमदलीप नेता, जिन्होंने सभाको अध्यक्षता की थी।