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पत्र: एम० आर० जयकरको

[पुनश्च:]

परिषद् ३ दिन चलेगी--२ से ४ अप्रैलतक।

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ४६२७) की फोटो-नकल से।

६७. तार: गोकर्णनाथको[१]

अहमदाबाद
१२ मार्च, १९२०

अप्रैलके पहले सप्ताहमें तो यहीं रहना पड़ेगा।

गांधी

मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ५९९०) की फोटो-नकलसे।

६८. पत्र: एम० आर० जयकरको[२]

१३ मार्च, १९२०

(१)

मैंने [रिपोर्टको] आज समाप्त करने की कोशिश की, परन्तु कर नहीं पाया। फिर भी मेरा खयाल है कि मैंने कम्पोजीटरोंको[३] प्रतीक्षामें नहीं रखा।

मैंने देखा हाशियेपर कसूरके बारेमें एक टिप्पणी अंकित है। लेकिन भीड़के आचरणके बारे में जो बातें कही गई हैं, उन्हें तो में नरम करके ही पेश करना चाहूँगा। ऐसा कर नहीं पाया हूँ। मैंने जो कुछ लिखा है, उसके प्रत्येक शब्दका औचित्य सिद्ध किया जा सकता है। परन्तु जहाँ में स्पष्ट निर्णयपर नहीं पहुँच पाया हूँ, वहाँ आप शायद मजमूनमें जरूरी फेर-बदल कर देने की जिम्मेदारी लेना चाहेंगे। कसूरकी

  1. यह तार लखनऊके प्रसिद्ध वकील और नेता श्री गोकर्णनाथ मिश्रको भेजा गया था। उस समय वे अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके महामन्त्री थे।
  2. कारण शायद यह था कि गुजरात साहित्य परिषद्के सिलसिले में रवीन्द्रनाथ ठाकुर अप्रैलके प्रथम सप्ताहमें गुजरात आनेवाले ये। देखिए "तार: गोकर्णनाथको", १५-३-१९२०।
  3. इस शीर्षकमें तीन पत्र हैं, जो गांधीजीने श्री जयकरको पंजाबके उपद्रोपर कांग्रेस-रिपोर्टको प्रेसको भेजी गई प्रतिके बारेमें एक ही दिन लिखे थे।