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६६. पत्र: रवीन्द्रनाथ ठाकुरको

आश्रम
साबरमती
११ मार्च, १९२०

प्रिय गुरुदेव,

आपके दो तार मिले थे--एक वह जो बनारसके पतेपर था और फिर वहाँसे यहाँ भेजा गया और दूसरा वह जो यहींके पतेपर था। पहुँचकी सूचना अबतक भेजने में असमर्थ रहा। आपने निमन्त्रण[१] स्वीकार किया है, इसके लिए हम सब आपके बहुत आभारी हैं। हम इस बातका भरपूर प्रयत्न कर रहे हैं कि आपको कार्यक्रमों या तमाशोंकी भरमारसे ज्यादा कष्ट न दिया जाये। क्या आप पत्र द्वारा, और यदि आवश्यक हो तो तार द्वारा, मुझे यह सूचित करने की कृपा करेंगे कि आप गुजरातको कितना समय दे सकेंगे और क्या आप एक या दो महत्त्वपूर्ण केन्द्रोंमें जा सकेंगे? दूसरा प्रश्न आपके निवासके सम्बन्धमें है। क्या आप आश्रम में ठहरेंगे? आपके आश्रममें ठहरने से मुझे जो प्रसन्नता होगी वह और किसी बातसे नहीं हो सकती। मेरी उत्कट इच्छा है कि अपने निवास-कालमें आप समझ लें कि आश्रम क्या है और यह किस उद्देश्यको लेकर चल रहा है। मेरी यह भी इच्छा है कि आप आश्रम में उन तमाम लोगोंको, जो आपके शिष्य रह चुकनेका दावा करते हैं, अपनी उपस्थितिका लाभ दें। गुजराती लड़के-लड़कियोंके तथा उस सिंधी लड़के गिरधारीके[२] अतिरिक्त किसकी याद आपको बनी होगी? मणीन्द्र भी अभी यहीं है और सरलादेवीका[३] पुत्र दीपक भी आश्रममें ही है। यह आश्रम अहमदाबाद शहरके केन्द्रसे लगभग चार मील दूर, साबरमतीके किनारे एक टोलेपर स्थित है।

अब आप चाहें तो आश्रममें ठहरें अथवा अहमदाबादके किसी निजी बँगलेमें, जिसमें सभी आधुनिक सुविधाएँ हों। कहने की जरूरत नहीं कि हमारा सबसे पहला कर्तव्य आपके स्वास्थ्य और सुख-सुविधाका ध्यान रखना है; और आपकी इच्छाओंका पालन हर प्रकारसे किया जायेगा। आप यदि कोई और विशेष व्यवस्था या वस्तुओंकी इच्छा रखते हों तो कृपया यह भी अवश्य सूचित कीजियेगा।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

  1. अहमदाबाद में गुजराती साहित्य परिषद्के २ से ४ अप्रैल, १९२० तक होनेवाले छठे अधिवेशनमें व्याख्यान देनेके लिए।
  2. जे० बी० कृपलानीके भतीजे।
  3. सरलादेवी चौधरानी।