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पत्र: एम० आर० जयकरको

(३)

श्री दासने[१] जो सबूतोंका सारांश तैयार किया है और जिस पूरक सामग्रीको जोड़नेका सुझाव दिया है, उसे मैंने ध्यानसे पढ़ लिया है। मैंने तो समझा था कि वे कुछ विशेष गवाहोंके बयानोंको इकट्ठा करके प्रस्तुत करेंगे और मैं उनका अध्ययन कर सकूँगा। जो भी हो, अभी जो सारांश मेरे सामने है, वह बिलकुल सन्तोषप्रद नहीं है, और इससे भी बड़ी बात यह है कि उन्होंने जिस ढंगपर विवेचन करनेका सुझाव दिया है, अगर उस ढंगसे विवेचन किया जाये तो इस रिपोर्टकी, जो मेरे विचारसे अन्यथा सन्तोषप्रद है, सारी खूबी नष्ट हो जायेगी। श्री दासने जो मुद्दे प्रस्तुत किये है, वे मुझे तो अलग-अलग कड़ियों-जैसे दिखाई देते हैं, जिन्हें आपसमें जोड़ा नहीं जा सकता जबकि मैं तो यह चाहता हूँ कि वे ईंटोंकी तरह एक-दूसरेसे जुड़ते जायें और एक सड़क बन जाये जिसपर चलकर पाठक लक्ष्यतक पहुँच जाये। वैसे तो में चाहूँगा कि उन्होंने जो परिकल्पना[२] सुझाई है, उसका विवेचन रिपोर्ट में अवश्य करूँ, लेकिन जबतक कुछ साफ सबूत सामने न हों, तबतक वैसा नहीं कर सकता।

इसका विवेचन प्रस्तुत करनेके लिए आप खुद इस चीजका अध्ययन करें और अगर आप अन्यथा सोचें तो मैं चाहूँगा कि इस मुद्देसे सम्बन्धित बयानोंको आप खुद एकत्र करें और फिर इस परिकल्पनाका विवेचन प्रस्तुत करें। आप जो कुछ भी लिख देंगे उसपर मैं हस्ताक्षर कर दूँगा, बशर्ते कि आप श्री दासने जो-कुछ कहा है, उससे आगे न जायें। उन्होंने तो यह बात हम दोनोंपर ही छोड़ दी है। मैं नहीं चाहता कि आप यों ही मेरे तर्कको स्वीकार कर लें। जो चीज मुझे बिखरी हुई और असम्बद्ध लगती है, हो सकता है, वह आपको बिलकुल सुसम्बद्ध लगे। यदि आप कोई भिन्न दृष्टिकोण अपनाते हैं तो में उसे सहर्ष स्वीकार करूँगा। अगर श्री दास हममें से किसी एककी भी सारी शंकाएँ दूर कर देते हैं तो मैं उनकी बात भी मान लूँगा। यदि आपको यह मामला इतना महत्त्वपूर्ण लगे कि इसपर सलाह-मशविरा किये बिना नहीं चल सकता तो उसके लिए यहाँ आ जाइए। कृपया इसे अपनी टिप्पणीके साथ श्री दासको भेज दें।

[अंग्रेजीसे]
द स्टोरी ऑफ माई लाइफ
  1. चितरंजन दास, कांग्रेसकी पंजाब उप-समिति द्वारा नियुक्त आयोगके सदस्य।
  2. इस पत्रके सम्बन्धमें श्री जयकर अपनी जीवनी द स्टोरी ऑफ माई लाइफ (पृ० ३३२) में कहते हैं: "यह इस प्रश्नके संदर्भ में था कि क्या इस विचारकी पुष्टिके लिए काफी प्रमाण हैं कि डायरने लोगोंको जलियाँवालाके अहाते में पहुँचा देनेका एक जाल बिछा रखा था, ताकि उन्हें भरपूर सजा दी जा सके। मेरी और मोतीलाल तथा दासको राय थी कि इस आरोपको सिद्ध करनेके लिए काफी प्रमाण हैं, और इसलिए रिपोर्ट में इसकी चर्चा की जानी चाहिए; किन्तु गांधी हमारे मतसे बिलकुल असहमत थे।"