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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुत्रने जो आचरण किया है उसपर मेरा टिप्पणी करना उचित ही होगा और उससे न्यायालयके निर्णयपर किसी प्रकारका प्रभाव न पड़ेगा। और क्या हमारे न्यायालय लोक-सेवी व्यक्तियोंको उस समय रोकते हैं जब वे मुकदमेबाजों को अपने दावे न्यायालयसे वे बाहर आपसमें बैठकर तय कर लेने के लिए प्रेरित करते हैं, अतः मेरा निवेदन यह है कि मैंने कोई मानहानि नहीं की है। मैंने किसी भी पक्षको प्रभावित नहीं किया है और न्यायाधीशके रूप में श्री कैनेडीके कार्यपर कोई टिप्पणी नहीं की है। मेरी उत्कट इच्छा है कि में न्यायालयको यह विश्वास दिला सकूँ कि श्री कैनेडीके पत्रपर टिप्पणी करते हुए मैने न्यायालयके प्रति रंचमात्र भी असम्मान नहीं दिखाया है। हो सकता है, मैने भूल की हो और न्यायालयके विचारसे गम्भीर भूल की हो; किन्तु मैंने गलत इरादेसे या अनादरभावसे ऐसा नहीं किया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि मैने जो-कुछ कहा है, वह सब प्रकाशक श्री देसाई के मामलेमें भी लागू होता है।

तब न्यायमूर्ति मार्टिनने श्री गांधीका ध्यान इंग्लैंडके एक फैसलेकी ओर दिलाया जिसको खबर हाल ही में लन्दनके 'टाइम्स' के एक अंकमें छपी थी। इस फैसलेमें एक समाचारपत्रके संपादक, प्रकाशक और मुद्रकपर मानहानिके अपराधमें जुर्माने किये गये थे।

श्री गांधी: यहाँ भी मेरा निवेदन है कि मैं दोनों मामलोंका अन्तर स्पष्ट कर सकता हूँ। मैं जब इंग्लैंडमें था उस समय वहाँ श्रीमती मेब्रिकका प्रसिद्ध मुकदमा चल रहा था। इस सवालपर सभी समाचारपत्र दो दलोंमें बँट गये थे; एक दल श्रीमती मेब्रिककी निन्दा करता था और दूसरा जज म्यायमूर्ति स्टीफेनकी खबर लेता रहता था तथा यहाँतक कहता था कि वे इस मुकदमेकी सुनवाई करने के योग्य ही नहीं है।

न्यायमूर्ति मार्टिन: किन्तु यह सब तो मुकदमा खत्म होने के बादकी बात है?

श्री गांधी: जी नहीं, जब यह मुकदमा चल रहा था तभीकी बात है। यह मुकदमा कई महीनेतक चला था और में इसकी हर दिनकी कार्रवाई पूरी-पूरी पढ़ जाया करता था।

न्यायमूर्ति मार्टिन: लेकिन श्री गांधी यह मुकदमा तो कई महीने नहीं कई दिन ही चला था।

श्री गांधी: निस्सन्देह, यहाँ मैं जो कुछ कह रहा हूँ उसमें भूल-सुधारकी गुंजाइश है, किन्तु मैं इस बारेमें बिलकुल निश्चित हूँ कि जिन दिनों यह मामला चल रहा था, उन दिनों वहाँके अखबार इस प्रश्नको लेकर व्यंग-वक्रोक्ति और आरोप-आक्षेपसे भरे रहते थे। मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि एक पत्रकारके रूपमें मैं आज भी उस हदतक नहीं जा सकता जिस हदतक वे जाते थे।

श्री देसाईने कहा कि श्री गांधीने जो-कुछ कहा है, उससे मैं सहमत हूँ। मुझे विश्वास है कि मैं अपने मामले में बहस करने में श्री गांधीकी तुलनामें बहुत अधिक अक्षम हूँ और में ऐसा करने की सोच भी नहीं सकता। न्यायाधीश महोदय जो भी