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क्या यह न्यायालय को मानहानि थी?


श्री गांधीने कहा कि कानूनके मुद्दे के बारे में मेरा मत ऐडवोकेट-जनरलसे भिन्न है। किन्तु मेरा मामला ऐसा है कि मैं इसके लिए कानूनके मुद्दे का आधार नहीं ले सकता। मैं कानूनी मुद्दोंपर बहस करना और अपने लिए मैंने जो सीमाएँ निश्चित कर रखी है, उनसे बाहर नहीं जाना चाहता। न्यायालय अबसे पहले बहुत-से मामलोंमें बचावके बिना ही न्याय कर चुका है और मैं चाहता हूँ, मेरे सम्बन्धमें भी यह समझा जाये कि मेरी ओरसे कोई बचाव पेश नहीं किया जा रहा है। न्यायाधीशगण कानूनके मुद्दे के आधारपर जो भी निर्णय देंगे उससे मुझे पूरा सन्तोष प्राप्त होगा।

न्यायमूर्ति मार्टिनने श्री गांधीको स्मरण दिलाया कि वे स्वयं भी एक वकील हैं और वे कानूनी दृष्टिकोणसे अपने मामले में बहस कर सकते हैं।

श्री गांधीने कहा कि मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ और उन्होंने फिर यही बात दुहराई कि कानूनी मुद्दे के बारेमें न्यायालयका जो भी निर्णय होगा उससे मैं सन्तुष्ट हो जाऊँगा। किन्तु चूँकि न्यायालयने मुझसे बहस करने के लिए बहुत आग्रह किया है, इसलिए मैं यह कहना चाहूँगा कि मुझे नहीं लगता कि मैंने ऐसा करके मुकदमेसे सम्बन्धित किसी पक्षको हानि पहुँचाई है। माननीय ऐडवोकेट-जनरलने कहा है कि जिला-जजके सम्बन्धमें मेरी टिप्पणीसे उनकी मानहानि होती है। लेकिन मैंने जिला-जजके सम्बन्ध में, उन्हें जजके रूप में देखते हुए टिप्पणी नहीं की थी, बल्कि एक व्यक्तिके रूप में देखते हुए की थी।

न्यायमूर्ति मार्टिन: उदाहरणके लिए एक सनसनीदार हत्याका मामला लीजिए। मान लीजिए कि अखबार मुकदमेके चालू रहते इससे सम्बन्धित घटनाओंपर टिप्पणी करते हैं, तो इसका नतीजा क्या होगा?

श्री गांधी: मैं तो एक सामान्य जनके रूप में दोनों मामलोंमें अन्तर करनेकी धृष्टता करूँगा। जिला-जजने यह पत्र वादीके रूप में लिखा है, जजके रूपमें नहीं।

न्यायमूर्ति मार्टिन: नहीं, यह पत्र तो उन्होंने एक जजको हैसियतसे, कुछ वकीलोंपर अपने न्यायाधिकरणका उपयोग करते हुए लिखा था।

श्री गांधी: मैं मानता हूँ, किन्तु वे किसी मुकदमेका निर्णय करने के लिए न्यायालय में नहीं बैठे हुए थे। मुझे फिर लग रहा है कि मैंने अपने लिए जो सीमाएँ निर्धारित कर रखी हैं, उनसे में बाहर जा रहा हूँ। न्यायालयको मानहानिके कानूनका कुल मतलब यह है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई कार्य न करे जिससे न्यायालयमें जो मुकदमा चल रहा हो वह किसी रूपमें प्रभावित हो। लेकिन यहां न्यायाधीशने जो-कुछ किया है, एक व्यक्तिके रूपमें किया है। मैंने न्यायाधीशोंके निर्णयको किसी भी रूपमें प्रभावित करने के लिए कुछ नहीं किया है।

न्यायमूर्ति मार्टिन: जब कोई मुकदमा विचाराधीन हो उस समय यदि अखबार उसपर टिप्पणी करें तो क्या यह बात खतरनाक न होगी? न्यायालय न्याय-संस्था न रह जायेगी और उसके बदले समाचारपत्र न्याय-संस्था बन जायेंगे।

श्री गांधी: मैं फिर एक अन्तर स्पष्ट करने की धृष्टता करूँगा। यदि कोई पुत्र अपने पितापर अनुचित रूपसे मुकदमा चलाये तो पिताके विरुद्ध मुकदमा चलाकर