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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और उचित प्रक्रियामें या न्यायालयकी कानूनी कार्यविधिमें रुकावट या बाधा डालना हो। ऐडवोकेट-जनरलने कहा कि इस पत्र और तत्सम्बन्धी टिप्पणीके प्रकाशनसे दो तरहसे मानहानि होती है: (१) लॉर्ड हार्डविकके शब्दोंमें इससे श्री कैनेडीको बदनाम किया गया है और (२) न्यायकी प्रक्रियामें बाधा डालने का प्रयत्न किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि उच्च न्यायालय छोटे न्यायालय की मानहानिके सम्बन्धमें भी दण्ड दे सकता है। अहमदाबादका जिला-न्यायालय उच्च न्यायालयकी निगरानीमें है और इसे न्यायालयके सामने जो-कुछ किया जाये, उसके अतिरिक्त और किसी बातके लिए मानहानिके आरोप में कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।

न्यायमूर्ति मार्टिनने पूछा कि क्या किसी दीवानी मुकदमे में वादपत्र या लिखित वक्तव्यको प्रकाशित करना न्यायालयकी मानहानि है।

ऐडवोकेट-जनरलने उत्तर दिया कि हाँ, यह मानहानि है। जबतक मुकदमेकी सुनवाई नहीं होती तबतक उसके सम्बन्धमें न्यायालयसे कही कोई भी चीज सार्वजनिक नहीं बनती। ऐडवोकेट-जनरलने (१९०६) १ किंग्ज ब्रांच पृष्ठ १३२, और (१९०३) २ के० बी० का भी हवाला दिया, और कहा कि ऐसे कागजात मुकदमा खत्म होनेके बाद प्रकाशित करने और उसके पहले प्रकाशित करने में अन्तर है। अन्तमें ऐडवोकेटजनरलने यह निष्कर्ष निकाला कि श्री गांधीके लेखका भाव यह है कि चूँकि श्री कैनेडी बोल्लोविज्मकी आग भड़का रहे हैं, इसलिए अगर उच्च न्यायालय उनके पत्रके अनुसार बरताव करेगा तो वह भी वैसे ही शान्ति भंग करेगा और बोल्शेविज्मकी आग भड़कायेगा।

श्री गांधीने न्यायालयको सम्बोधित करते हुए कहा कि में अपने वक्तव्यमें जोकुछ कह चुका हूँ उससे अधिक कुछ कहना नहीं चाहता। मेरे बहुतसे सम्मान्य मित्रोंने इस बातपर विचार करने के लिए कहा कि मैं अभीष्ट क्षमायाचना न करके कहीं जिद तो नहीं कर रहा हूँ। मैंने इस मामले में बार-बार विचार किया है और न्यायालयको राय जो भी हो, लेकिन मैं तो उससे यही विश्वास करने का अनुरोध करूँगा कि मेरे मन में जिद जैसी कोई बात ही नहीं है। मैं सामान्य न्यायालयका पूरा आदर करना चाहता हूँ। लेकिन दूसरी ओर में यह आशा भी करता हूँ कि अगर मैं अपनी सम्मान भावना और पत्रकारिताके गौरवका भी वैसा ही खयाल रखू तो इसमें न्यायालयको कोई आपत्ति नहीं होगी। मैंने ऐडवोकेटजनरलका विचार ध्यानपूर्वक सुना है और यह समझनेका प्रयत्न किया है कि वे जो-कुछ कह रहे हैं, उसमें क्या कहीं कोई ऐसी बात है जिससे मुझे प्रतीत हो सके कि मैं गलतीपर हूँ। यदि मुझे ऐसी कोई प्रतीति हो गई होती तो अपना वक्तव्य तुरन्त वापस ले लेता और क्षमा माँग लेता। मैं इससे अधिक कुछ नहीं कहना चाहता।

न्यायमूर्ति मार्टिनने कहा कि कानूनका मुद्दा श्री गांधीके विरुद्ध है। श्री गांधीने कहा है कि एक पत्रकारकी हैसियतसे उन्होंने जो-कुछ किया है, वह करनेका उन्हें अधिकार है। किन्तु ऐडवोकेट-जनरलने उनके विरुद्ध प्रमाण दिये हैं। क्या उनके पास अपनी स्थितिके समर्थन में पेश करने के लिए ऐसे पूर्वोदाहरणोंका कोई प्रमाण है?