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क्या यह न्यायालयकी मानहानि थी?

दावा है कि पत्रको प्रकाशित करने और उसपर टिप्पणी करने में उन्होंने अपने पत्रकारके अधिकारोंके भीतर काम किया है। इसके उत्तरमें पंजीयकने लिखा[१] कि मुख्य न्यायाधीश महोदय इस उत्तरसे सन्तुष्ट नहीं है, लेकिन यदि 'यंग इंडिया' के अगले अंकमें निम्न प्रकारको क्षमा याचना छाप दी जायेगी तो यह पर्याप्त माना जायेगा।

क्षमा-याचनाका प्रारूप

चूँकि हमने ६ अप्रैल, १९१९ को 'यंग इंडिया' में अहमदाबाद के जिला-जज श्री कैनेडीका बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको लिखा गया एक व्यक्तिगत पत्र प्रकाशित किया था और चूँकि उसी दिन हमने उक्त पत्रपर कुछ टिप्पणियाँ छापी और चूंकि हमें यह बताया गया है कि जब उक्त उच्च न्यायालयमें इस पत्रके सम्बन्धमें कुछ कार्रवाई की जा रही है उस समय उक्त पत्रको छापना या उसपर टिप्पणी करना हमारे लिए उचित न था, अतः अब हम इसके लिए खेद प्रकट करते हैं और उक्त पत्र और उसके सम्बन्धमें टिप्पणियाँ छापनेके लिए उक्त उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय और न्यायाधीशोंसे क्षमा याचना करते हैं।

ऐडवोकेट-जनरलने कहा कि मैं तनिक विश्वासके साथ निवेदन करता हूँ कि यह क्षमायाचना ऐसी थी जो प्रतिपक्षीको प्रकाशित कर देनी चाहिए थी। मेरे खयालसे इससे नर्म क्षमा-याचनाकी बात सोचना कठिन था। फिर भी, श्री गांधीने यह क्षमा-याचना प्रकाशित नहीं की और वकीलकी सलाह लेकर पंजीयकको पत्र लिखा कि वे क्षमा याचना करने में असमर्थ हैं। यह पत्र मिलने से पहले उच्च न्यायालयने ११ दिसम्बरको मानहानिके जुर्ममें एक नोटिस जारी करनेका आदेश दे दिया था। यह मुकदमा उसीपर आधारित है। श्री गांधीका ११ दिसम्बर, १९१९ का पूरा पत्र इस प्रकार है।[२]

इस आदेशकी सुनवाईसे कुछ दिन पूर्व २७ फरवरीको श्री गांधीने पंजीयकके नाम एक पत्र[३] लिखा, जिसके साथ श्री देसाई और वे [श्री गांधी] जो वक्तव्य न्यायालयकी सेवामें भेजना चाहते थे वे वक्तव्य भी भेज दिये। दोनों वक्तव्योंके पाठ नीचे दिये जा रहे हैं।[४]

ऐडवोकेट-जनरलने आगे कुछ निर्णयोंका उदाहरण देते हुए यह बताया कि न्यायालयकी मानहानिमें क्या-क्या बातें आती हैं। २ क्यू० बी० पृष्ठ ३६ में कहा गया है कि मानहानि दो प्रकारकी होती है: (१) ऐसा कार्य या लेख जो न्यायालयको बदनाम करनेवाला हो; (२) ऐसा कोई भी कार्य या लेख जिसका उद्देश्य न्यायकी सामान्य

  1. इस पत्रपर ३१ अक्तूबर, १९१९ की तारीख पड़ी हुई थी और यह गांधीजीको ७ नवम्बर, १९१९ को लाहौरमें मिला था।
  2. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रके पाठके लिए देखिए खण्ड १६, पृष्ठ ३५०-५१।
  3. और
  4. यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। पत्र और वक्तव्योंके पाठके लिए देखिए "पत्र: बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको",२७-२-१९२०।