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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ऐडवोकेट-जनरलने मामलेको आरम्भ करते हुए कहा कि यह कार्रवाई श्री गांधी और श्री देसाई द्वारा न्यायालयकी मानहानिके सिलसिलेमें की जा रही है; क्योंकि वे सम्बन्धित पत्रिकाके क्रमशः सम्पादक और प्रकाशक हैं, इस बारे में कोई सन्देह ही नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि ऐसा जान पड़ता है कि पिछले अप्रैल महीने में श्री कैनेडीने यह देखकर कि अहमदाबादके कुछ वकीलोंने सत्याग्रहकी प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर किये है,[१] उनसे जवाब तलब किया था। उन्होंने पूछा था कि प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर करने के कारण उनकी सनदें क्यों न रद कर दी जायें, और चूंकि उन्हे वकीलोंका जवाब सन्तोषजनक नहीं लगा इसलिए उन्होंने २२ अप्रैल, १९१९ को उच्च न्यायालयके रजिस्ट्रारको एक पत्र लिखा। उसके फलस्वरूप उच्च न्यायालयने सम्बन्धित वकीलोंके नाम दो नोटिस जारी किये। श्री कैनेडीके पत्रकी एक नकल रजिस्ट्रारने एक वकीलके प्रतिनिधि श्री दिवेटियाको दी जिन्होंने वह नकल फिर श्री कालिदास जे० झवेरी नामक एक सत्याग्रही वकीलको दे दी और श्री झवेरीने श्री गांधीको। ६ अगस्तको यह पत्र "अहमदाबादमें ओ'डायरवाद' शीर्षकसे उनके पत्रमें प्रकाशित किया गया और उसके साथ "सत्याग्रहियोंको डिगानेकी कोशिश"[२] शीर्षकसे एक लेख इस पत्रकी आलोचना करते हुए छापा गया। (यहाँ एडवोकेट-जनरलने पत्र और लेख पढ़कर सुनाये।) उन्होंने आगे कहा कि लेखसे प्रतीत होता है कि, "ओ'डायर" से तात्पर्य उस व्यक्तिसे था जो शान्तिका भंजक हो। लेख में कहा गया है कि जिला-जज इस मामले में सुनवाईसे पहले ही फैसला दे रहे हैं। लेखमें उनका व्यवहार सज्जनताके विरुद्ध ही नहीं, उससे भी बुरा, अक्षम्य बताया गया है। उनके बारे में कहा गया है कि वे बोल्शेविज्मकी आग भड़का रहे हैं। संक्षेप में, श्री कैनेडीके विरुद्ध ये आरोप लगाये गये हैं। फिर कार्रवाई हुई। कार्रवाई के बाद पंजीयकने श्री गांधीको एक पत्र लिखा, जिसमें उनसे मुख्य न्यायाधीशके कमरेमें उपस्थित होकर यह पत्र प्रकाशित करने के सम्बन्धमें स्पष्टीकरण देने के लिए अनुरोध किया गया था। श्री गांधीने तार[३] द्वारा उत्तर भेजते हुए सूचित किया कि अपनी पंजाब-यात्राके कारण वे निश्चित समयपर आने में असमर्थ है, इसलिए क्या लिखित स्पष्टीकरण दे देना पर्याप्त होगा? पंजीयकने उत्तर दिया कि मुख्य न्यायाधीश महोदय श्री गांधीके निर्धारित कार्यक्रम में बाधा डालना नहीं चाहते और लिखित स्पष्टीकरणसे काम चल जायेगा। २२ अक्तूबरको श्री गांधीने एक लिखित स्पष्टीकरण[४] भेजा। इसमें उन्होंने कहा कि उन्हें उक्त पत्र आम तरीकेसे ही मिला था। और चूँकि उन्हें वह सार्वजनिक दृष्टिसे बड़ा महत्त्वपूर्ण जान पड़ा, इसलिए उन्होंने इसे छाप दिया और इसपर टिप्पणी करते हुए सोवा कि यह एक सार्वजनिक सेवाका कार्य है। इसलिए उनका

  1. रौलट विधेयकों के विरुद्ध आपत्ति प्रकट करनेके लिए यह प्रतिज्ञापत्र गांधीजीने पार किया था और २४ फरवरी, १९१९ को वल्लभभाई पटेल, सरोजिनी नायडू, हॉनिमैन तथा अन्य लोगोंकि साथ उन्होंने स्वयं भी इसपर हस्ताक्षर किये थे; देखिए खण्ड १५, पृष्ठ १०४-५
  2. देखिए खण्ड १६, पृष्ठ १०-१२ ।
  3. देखिए खण्ड १६, पृष्ठ २६०%, पा० टि०१।
  4. देखिए खण्ड १३, पृष्ठ २६०-६१।