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६०. तार: बंगाल खिलाफत समितिको

{{right|[७ मार्च, १९२० या उसके बाद][१] मैने एक ज्ञापन-पत्र जारी किया है जिसमें[२] १९ तारीखके कार्यक्रमका अनुमोदन करते हुए विचार व्यक्त किये हैं। यदि आन्दोलन हिंसात्मक नहीं बन जाता है तो मरते दमतक साथ दूँगा।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ११-३-१९२०

६१. ६ अप्रैल और १३ अप्रैल

हम ६ अप्रैल[३] और १३ अप्रैलको[४] कभी भूल नहीं सकते। अप्रैलकी ६ वीं तारीखने समस्त भारत में एक जीवनी-शक्तिका संचार किया था और १३वीं अप्रैलने निरपराध लोगोंका रक्त बहाकर पंजाबको पूरे देशके लिए पवित्र तीर्थ बना दिया है। ६ अप्रैलको सत्याग्रह आरम्भ किया गया था। हो सकता है, कोई उसके सविनय-अवज्ञा वाले हिस्सेसे असहमत हो; किन्तु सत्य और प्रेम या अहिंसाके मूलभूत सिद्धान्तोंसे कोई भी असहमत नहीं हो सकता। अहिंसापूर्वक सत्यका आचरण करके आप समस्त संसारको अपने चरणों में झुका सकते हैं। सत्याग्रह तत्त्वतः राजनीतिक अर्थात् राष्ट्रीय जीवनमें सत्य और विनयको प्रविष्ट करानेका प्रयत्नमात्र है, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं। और कोई सत्याग्रहकी प्रतिज्ञा ले या न ले, इसमें कोई सन्देह नहीं किया जा सकता कि सत्याग्रहकी भावना जन-साधारणमें काफी फैल चुकी है। जो भी हो, अपने पंजाबके दौरे में जिन हजारों पंजाबियोंसे में मिला हूँ उन्हें देखकर तो मुझे ऐसा ही लगा है।

इसके अतिरिक्त ६ अप्रैलको हिन्दू-मुस्लिम एकता और स्वदेशीकी एक निश्चित योजना भी आरम्भ की गई थी।

६ अप्रैलको ही रौलट अधिनियमकी आधारभूत भावना समाप्त हो गई और वह एक निष्प्राण चीज बनकर रह गया। १३ अप्रैलको वह अतीव शोकपूर्ण [जलियांवाला बागकी] घटना ही नहीं घटी बल्कि उसमें हिन्दुओं और मुसलमानोंका रक्त एक

  1. पाठमें जिस "ज्ञापन-पत्र" का उल्लेख है वह ७ मार्च, १९२० को खिलाफतके सम्बन्धमें समाचारपत्रोंको भेजा गया वक्तव्य है (देखिए पिछला शीर्षक)। इसलिए यह तार उसी तारीखको या उसके बाद भेजा गया होगा।
  2. खिलाफत दिवस।
  3. १९१९, देशव्यापी हड़ताल दिवस।
  4. ४.१९१९, जलियाँवाला बागके हत्याकाण्डका दिन ।