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सात

लक्ष्य हो और समान सुख-दुःख हों। और इस समान लक्ष्यकी प्राप्तिके प्रयत्नमें सहयोग करना, एक-दूसरेका दुःख बँटाना और परस्पर सहिष्णुता बरतना, इस एकताकी भावनाको बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है।" (पृष्ठ ५२) बिना-किसी शर्तके मुसलमानोंकी माँगका हिन्दुओं द्वारा प्रबल समर्थन, मुसलमानोंके मनमें सद्भावना उत्पन्न किये बिना और एकताके बन्धनोंको दृढ़ बनाये बिना नहीं रह सकता था। गांधीजीके प्रयत्नोंके फलस्वरूप १९२०के मध्य में ऐसी प्रतीति हुई कि हिन्दुओं और मुसलमानोंकी शाश्वत मैत्रीकी नींव पड़ गई है।

जिस तरह खिलाफतके बारेमें, उसी प्रकार असहयोग आन्दोलनके विषयमें भी आशंकाएँ व्यक्त की गई। श्रीमती एनी बेसेंटने भी यही विचार व्यक्त किया कि असहयोग आन्दोलन हिंसक कार्रवाइयोंका रूप धारण कर लेगा। गांधीजी इस आशंकाको ठीक नहीं मानते थे। २८ अप्रैल, १९२० को 'यंग इंडिया' में लिखते हुए उन्होंने कहा: "किन्तु मुझे किसी दुष्परिणामकी आशंका नहीं है। इसका सीधा-सादा कारण यह है कि प्रत्येक उत्तरदायी मुसलमान समझता है कि अगर असहयोगको सफल बनाना है तो उसमें हिंसा बिलकुल न होनी चाहिए। (पृष्ठ ३८६) उन्होंने यह भी कहा: यह तो हम नहीं कहते कि खून-खराबी कदापि नहीं हो सकती, लेकिन मेरे खयालसे खून-खराबी न हो इसके पूरे उपाय कर लेनेके बाद हमें अपने कार्योमें लगे रहना चाहिए।" (पृष्ठ ४०७) असहयोगका एक अन्य व्यावहारिक पक्ष सामने रखते हुए उन्होंने कहा: "मेरी दृढ़ मान्यता है कि यदि असहकार आन्दोलन आरम्भ न हुआ होता तो खून-खराबी कबकी शुरू हो गई होती। असहकारके कारण ही खून-खराबी नहीं हुई है। मुसलमान भाइयोंका खून खौल रहा है, लेकिन हिन्दू उनके साथी हैं, इस विचारसे वे धीरज रखे हुए हैं।" (पृष्ठ ४५५) फिर भी कार्यक्रमपर अमल तो धीरे-धीरे ही किया जाना था और प्रत्येक कदमपर जनताको प्रतिक्रिया सावधानीसे देखते रहना भी आवश्यक माना गया था।

जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं, मई १९२० में हंटर समितिकी रिपोर्ट के प्रकाशनसे ब्रिटिश शासनके कथित नैतिक आधारका पर्दा फाश हो गया। पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नरने लोगोंका पक्ष ठीक तरहसे पेश किये जानेकी सुविधा देनेसे इनकार कर दिया था और इसलिए कांग्रेस उक्त समितिकी कार्रवाईमें भाग लेनेसे इनकार कर चुकी थी। इसके बावजूद गांधीजीने सोचा था कि हंटर समिति अपूर्ण साक्षियोंके आधारपर भी ठीक निष्कर्षोंतक पहुँचनेकी कोशिश करेगी। स्वयं कांग्रेसने भी एक जांचसमिति नियुक्त कर दी थी। गांधीजी उसके सदस्य थे। समितिने जो जानकारी हासिल की उसके आधारपर गांधीजीने विवरण तैयार किया और वह मार्च १९२० में प्रकाशित भी हुआ। लगभग १५ दिनोंतक रात-दिन काम करके गांधीजीने उक्त रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट अहमदाबादके आश्रममें रहकर तैयार की गई थी। यह कोई कानूनी मसविदा या निरी पत्रकारितासे सम्बन्धित लेख नहीं था। इसके पहले गांधीजी बड़े परिश्रमके साथ पूरे पंजाबका दौरा कर चुके थे और इसलिए यह विवरण एक असाधारण विवरण है। इसमें पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकेल ओ'डायरकी राष्ट्र-