पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/१०९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८१
वक्तव्य: समाचारपत्रोंको


अब हम यह देखें कि क्या-कुछ करना चाहिए:

(१) १९ तारीखको[१] कारोबार बन्द रखना और सिर्फ एक प्रस्ताव पास करके अपनी न्यूनतम माँगोंको स्पष्ट करना एक आवश्यक प्रारम्भिक कार्रवाई है, लेकिन शर्त यह है कि हड़ताल पूर्णरूपसे स्वयंस्फूर्त हो और जबतक मजदूरों को मालिकोंको अनुमति न मिल जाये तबतक उनसे कामसे नागा करनेको न कहा जाये। मैं तो पूरा अनुरोध करूँगा कि मिल-मजदूरोंको बिलकुल अछूता छोड़ दिया जाये। दूसरी शर्त यह है कि हड़तालमें हिंसा नहीं होनी चाहिए। मुझसे अक्सर ऐसा कहा गया है कि खुफिया पुलिसके लोग हिंसा भड़काते हैं। यह बात सर्वसामान्य आरोपके तौरपर सच होगी, यह मैं नहीं मानता। लेकिन अगर यह सच भी हो तो भी हमारा अनुशासन ऐसा होना चाहिए कि यह असम्भव हो जाये। हमारी सफलता सिर्फ इस बातपर निर्भर करती है कि हममें जनसाधारणको नियन्त्रित और अनुशासित रखने तथा उसका सही मार्गदर्शन करनेकी कितनी क्षमता है।

अब दो शब्द इस सम्बन्धमें भी कि अगर हमारी माँगें पूरी नहीं की जाती तब क्या किया जा सकता है। बर्बर तरीका तो युद्ध है--चाहे वह खुलकर किया जाये या छिपकर। लेकिन इसका तो विचार भी नहीं करना चाहिए, भले ही वह इसी कारण हो कि यह चीज अव्यावहारिक है। अगर मैं हर व्यक्तिको यह समझा सकूँ कि यह चीज सदैव बुरी ही होती है तब तो हम अपने सभी वैध लक्ष्योंको बहुत ही जल्दी सिद्ध कर लें। कोई व्यक्ति या राष्ट्र शपथपूर्वक हिंसाका परित्याग करके जो शक्ति उत्पन्न करता है, वह दुर्दमनीय हुआ करती है। लेकिन आज मैं हिंसाके विरुद्ध जो दलीलें पेश कर रहा हूँ वे विशुद्ध रूपसे व्यवहारपर आधारित हैं अर्थात् हिंसा एक सर्वथा व्यर्थकी चीज है।

तब हमारे सामने एकमात्र असहयोगका ही उपाय रह जाता है। यह सबसे निष्कलुष उपाय है, क्योंकि अगर इसे हिंसासे सर्वथा अलग रखा जाये तो यह सबसे अधिक कारगर तरीका है। और जब सहयोग करनेका मतलब गिरावट, अपमान या अपनी प्रिय धार्मिक भावनाओंको चोट पहुँचाना हो उस समय असहयोग करना कर्तव्य बन जाता है। हम ऐसे अधिकारोंका अन्यायपूर्वक छीना जाना दीनभावसे बरदाश्त कर लें जिनके साथ मुसलमानोंके जीवन-मरणका सवाल जुड़ा हो, इसकी आशा इंग्लैंडको नहीं करनी चाहिए। इसलिए हमें ऊपर और नीचे, दोनों ही स्तरोंपर असह्योग शुरू करना चाहिए। जो लोग सम्मानजनक पदोंपर या मोटी तनख्वाहोंवाले पदोंपर बैठे हुए हैं,

उन्हें उनसे अलग हो जाना चाहिए। जो लोग छोटे दर्जेकी सरकारी नौकरी कर रहे हैं उन्हें भी ऐसा ही करना चाहिए। लेकिन जो लोग किसीकी वैयक्तिक सेवामें लगे हुए हों, उनको असहयोग नहीं करना है। जो लोग असहयोगका तरीका नहीं अपनाते उनका बहिष्कार करनेकी धमकीको भी मैं पसन्द नहीं कर सकता। असहयोग जब स्वेच्छया किया जाये तभी कारगर होता है क्योंकि लोक-भावना और जन-असन्तोषकी

  1. खिलाफत-दिवस, जो उपवास और हड़ताल करके राष्ट्रीय शोक-दिवसके रूपमें मनाया जानेवाला था।
१७-६