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५६. तार : के० सन्तानम्को

६ मार्च, १९२०

मेरे द्वारा लिये गये बयानोंका[१] अनुवाद अहमदाबाद तुरन्त भेजिए, शेष बयानोंको भी उनका अनुवाद करके भेजियेगा।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७१४५) की नकलसे।

५७.'नवजीवन' की स्थिति

'नवजीवन' पत्रको साप्ताहिक में बदलते समय और उसका सम्पादन कार्य सँभालते[२] समय मैंने मन में कुछ बन्धन माने थे। उनमें से कुछसे तो पाठक परिचित हैं। दो शर्तोकी ओर मैं एक बार फिर पाठकोंका ध्यान आकर्षित करता हूँ।

१. 'नवजीवन' में पैसे लेकर विज्ञापन नहीं लिये जाने चाहिए।

२. नुकसान उठा कर 'नवजीवन' नहीं चलाया जाना चाहिए।

आजकल 'नवजीवन' की नौ हजार प्रतियाँ छपती हैं। जबतक बीस हजार प्रतियाँ नहीं छपती तबतक मुझे सन्तोष नहीं होगा और अगर यह संख्या पचास हजारतक पहुँच जाए तो मैं आश्चर्य नहीं मानूँगा। लेकिन इतनी प्रतियां प्रकाशित करनेकी अबतक व्यवस्था नहीं हो पाई है। हमारे पास संख्या में इसके योग्य मशीनें और व्यक्ति भी नहीं है, और न उतनी प्रतियाँ आसानीसे प्रकाशित करने योग्य जगह ही है। इस सबके अतिरिक्त मेरे साथी और मैं भी इस समय ऐसी स्थिति में नहीं है कि पचास हजार ग्राहकोंको आकर्षित कर सकने योग्य पर्याप्त और सुन्दर सामग्री दे सकें। ईश्वरेच्छा होगी तो ऐसा समय अवश्य आयेगा। मैं पिछले अंकको कुछ हदतक उक्त स्तरका कह सकता हूँ। गाहेबगाहे और भी ऐसे अंक प्रकाशित हुए है। लेकिन अंग्रेजीमें कहावत है कि एक ही कोयलके बलपर बसन्त नहीं आ जाता। उसी तरह 'नवजीवन' के एक उत्तम अंकसे सब अंक अच्छे नहीं कहे जा सकते। सरलादेवीजी [चौधरानी] के 'बन्धु' नामक लेखके कारण अन्तिम अंक उत्तम हो गया है। यह लेख दो किस्तोंमें छपा है। इसका पूर्वार्द्ध, कुछ वर्ष पहले जब वे किसी वनप्रदेशमें रहती थीं, तब लिखा गया था। लेकिन वह था अप्रकाशित। इस बार जब मैंने उनसे

  1. सन् १९१९ के पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें गांधीजी द्वारा लिये गये बयान। गांधीजी उपद्रवोंक सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्टका मसविदा तैमार कर रहे थे, और उसीके लिए उन्होंने उक्त बयानों के अनुवाद मँगाये थे।
  2. ७ सितम्बर, १९१९ से।