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१५२. पंजाबकी घटनाओंका शिकार


बिहारीलाल सचदेव चौबीस वर्षका एक नवयुवक है। उसके परिवार में उसकी युवा स्त्री और बहत्तर वर्षके वृद्ध पिता हैं। वह गुजरांवाला जत्थे के लोगों में से है। उसे आजीवन देश निकाले तथा सम्पत्तिकी जब्तीका दण्ड दिया गया था। उसने "सम्राट्के विरुद्ध युद्ध छेड़ा" था। इस्तगासेने ऐसा ही कहा और अदालतने ऐसा ही पाया है। पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयने इस दण्डको घटाकर चार वर्षका कारावास कर दिया है। इससे उस कैदीको, जो निर्दोष है या उसके पिताको जो अपने अन्तिम दिन गिन रहा है, क्या तसल्ली मिल सकती है?

और इसलिए बेचारे बिहारीलालने दूसरी अर्जी[१] पेश की है, क्योंकि "उसका खयाल है कि किसी भारी चूकके कारण ही उसके मामलेपर पूरा विचार नहीं किया जा सका होगा।" अर्जी बहुत ही युक्तिपूर्ण है। यह इतनी अच्छी तरह लिखी गई है कि सचमुच पढ़ने लायक है। यह शाब्दिक चमत्कार तथा बेकारके विशेषणोंसे लगभग पूरी तरह मुक्त है। साथ ही यह इतनी छोटी है कि व्यस्त पाठक भी इसे आसानीसे पढ़ लेगा।

अभी पिछले दिनों एक मित्रने मुझसे कहा कि वे अपने जीवनके चालीस वर्षोंतक ब्रिटिश न्यायकी प्रशंसा करते रहे लेकिन पंजाबने उनकी आँखें खोल दीं। अब वे ब्रिटिश न्याय-भावनामें विश्वास नहीं रखते। उन्होंने बड़े तैशमें कहा, "आपके सुधारोंकी मुझे जरा भी परवाह नहीं है। यदि हमारा सम्मान और हमारा जीवन सुरक्षित नहीं है, यदि अन्यायपूर्वक जेलमें ठूंस दिये जानेका खतरा हमपर बराबर बना हुआ है तो हमें आपके सुधारोंसे क्या लाभ? में उनको जरा भी महत्त्व नहीं देता।"

जो हो, बिहारीलाल सचदेवका मामला ऐसा ही जान पड़ता है। यह मामला शायद गलत शिनाख्त का है। यह युवक एकदम निर्दोष प्रतीत होता है। उसे ४ और ५ अप्रैल या १२ और १३ अप्रैलके मजमोंसे किसी प्रकार सम्बद्ध या उनमें से किसी में उपस्थित नहीं बताया गया है। मुख्य गवाहका बयान सुनी-सुनाई बातोंपर आधारित है। दूसरी गवाही भी गढ़ी हुई बताई जाती है, और यदि हलफिया बयान सच भी हो तो उससे कोई अपराध प्रकाशमें नहीं आता। अभियुक्तके पक्ष में प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्तियों द्वारा दिये गये बयानोंकी ओर अदालतने कोई ध्यान नहीं दिया। पंजाबके मामलोंमें दिये जानेवाले फैसलोंसे पाठक इतने परिचित हो गये होंगे जिससे उन्हें विशेष अदालतोंके ऐसे रवैये से अब कोई आश्चर्य नहीं होगा। लेकिन आश्चर्य तो इस बात से होता है कि अब भी, जब पंजाब में पूरी तरहसे शान्तिका साम्राज्य स्थापित हो गया है, अन्यायके इन मामलोंकी ओर लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदय उचित

  1. यह अर्जी भी यंग इंडियाके इसी अंकमें प्रकाशित की गई थी।