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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूरी तरह मुक्त होनेके बाद आराम कर रहा हूँ और नियमित रूपसे पथ्य-पोषण ले रहा हूँ। उसमें हररोज थोड़ी-थोड़ी वृद्धि भी कर रहा हूँ और आशा है कि दस-एक दिनमें चलने-फिरने लायक शक्ति आ जायेगी। तुमने तीमारदारीके बारेमें पूछा है। मानव- प्रेमके द्वारा जितना कुछ सम्भव है, वह सब लोगोंने मेरे लिए किया। बीमारीने मुझे आनन्द और दुःख दोनों दिये । इतने अधिक लोग मेरी सेवा करते थे, यह देख आनन्द होता था ।और अपनी कमजोरी तथा मूर्खताके कारण मुझे सेवाकी जरूरत पड़ी, इसका दुःख होता था। प्रेमका यह बहुमूल्य अनुभव मुझे अपनी शक्ति-भर लोगोंकी सेवा करनेकी अतिरिक्त प्रेरणा देता है। किन्तु दूसरोंकी सेवा भी अन्तमें अपनी ही सेवा है और अपनी सेवाका अर्थ है आत्मशुद्धि। मैं किस तरह अधिक आत्मशुद्धि कर सकता हूँ, यह सवाल मेरी बीमारीके दिनों मेरे मनमें घूमता रहता था। मेरे लिए ईश्वरसे दुआ माँगना।

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

४४. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको[१]

अगस्त ३१, १९१८

[ प्रिय चार्ली, ]

तुम्हारी बातसे बड़ा आश्चर्य और सुख हुआ। मुझे तो पता ही नहीं था कि शान्तिनिकेतनमें इतने गुजराती-मारवाड़ी हैं। ये सभी विद्यार्थी वहाँ रहकर अपना पाठ्यक्रम पूरा करें, पूरे समय रहें, तो वे गुजरात और बंगालके बीचकी कैसी अच्छी कड़ी सिद्ध हों। निःसन्देह यदि कविने इसी तरह स्वयं पढ़ाना जारी रखा तो सभी गुजराती पाठ्यक्रमके पूरा होने तक वहाँ बने रहेंगे। इतना ही नहीं, और भी बहुतसे विद्यार्थी वहाँ पहुँचेंगे। मैं यह जाननेको उत्सुक हूँ कि वहाँकी सफाईपर क्या कोई खास आदमी ध्यान देता है? क्या पानीकी व्यवस्था भी ठीक हो गई है?

जहाँतक मेरा सवाल है तबीयत धीरे-धीरे सुधरती जा रही है। प्रगति इतनी धीमी है कि तंग आ जाता हूँ। शरीर लगभग नये सिरेसे बनाना है। स्वाभाविक है कि इसमें समय लगेगा। खास तौरपर जब मुझे यह काम रोज-ब-रोज दूध और उससे बननेवाले पदार्थोंके अतिरिक्त अन्य चीजोंसे ही लेना है । परन्तु मेरा खयाल है कि मैं शरीरको सँभाल लूंगा। तुम इतमीनान रखो कि मैं फौजी भरतीके कामकी या कांग्रेसके काम-काजकी जरा भी चिन्ता नहीं करता । तुम्हारी तरह मैं यह तो नहीं कह सकता

  1. एन्ड्रयूज के उस पत्रके उत्तरमें, जिसमें कहा गया था कि शान्तिनिकेतनमें ७० गुजराती और मारवाड़ी विद्यार्थी हैं और रवीन्द्रनाथ ठाकुर बड़े प्रेमसे उनकी देखभाल करते हैं और उनके माता-पिता आदिके आनेपर स्वयं उनकी अभ्यर्थना करते हैं।