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३२३. पत्र : एस० आर० हिगनेलको

लैबर्नम रोड
बम्बई
जून ९, १९१९

प्रिय श्री हिंगनेल,

मैंने पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें एक जाँच समिति नियुक्त करनेका सुझाव देते हुए जो पत्र[१]लिखा था, उसके उत्तरमें भेजे गये आपके पत्रोंके लिए धन्यवाद । आपने मेरे स्वास्थ्यका हाल पूछा है, उसके लिए भी आभारी हूँ । कहना चाहिए, स्वास्थ्य ठीक ही है ।

मैं इस समय लाहौरके 'ट्रिब्यून' पत्रके सम्पादक बाबू कालीनाथ रायके मामलेका अध्ययन कर रहा था। मैंने उनके वे लेख पढ़ लिये हैं जो उनके विरुद्ध भारतीय दण्डसंहिता की धारा १२४के अन्तर्गत चलाये गये मुकदमेका आधार, एकमात्र आधार हैं। मामलेका अध्ययन करनेके बाद मेरा खयाल यह बना है कि बाबू कालीनाथ रायके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया गया है। पहली अप्रैलसे लेकर 'ट्रिब्यून' की फाइल देखनेके बाद मैं इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि कोई भी पत्र अपनी बात इससे अधिक संतुलित और संयत ढंगसे पेश नहीं करता। मैं इस मामलेपर परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदयसे बहुत ही गम्भीरतापूर्वक विचार करनेका अनुरोध करता हूँ। यह स्पष्ट अन्याय है और ऐसे अन्यायको बिना समाधानके नहीं छोड़ना चाहिए। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि श्री रायको रिहा करनेका कोई मार्ग अवश्य निकाला जायेगा और वह भी जल्दी ही। फैसले में कहा गया है कि श्री रायने खेद प्रकाश भी किया। मैंने सम्बन्धित लेखों में ऐसा एक भी वाक्य नहीं देखा है जिसके लिए खेद प्रकाशकी जरूरत हो । किन्तु यह अत्यन्त दुःखजनक बात है कि एक सज्जन व्यक्तिके खेद प्रकाशकी भी उपेक्षा कर दी गई। मुझे आशा है कि आप इस पत्रको परमश्रेष्ठके सम्मुख यथासम्भव शीघ्र ही प्रस्तुत कर देंगे । साथमें परमश्रेष्ठके अवलोकनार्थ 'यंग इंडिया'का वह अंश, जिसमें श्री रायके मामलेका उल्लेख है, भेज रहा हूँ ।[२]

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० ६६४० ) की फोटो- नकलसे ।

 
  1. ३०-५-१९१९ का पत्र।
  2. अन्तिम वाक्य गांधीजीके स्वाक्षरोंमें है ।